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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
है। उदा.-प्रतिपन्नम् पडिवण्ण। प्रतिभासः पडिहासो। प्रतिहारः पडिहारो। प्रतिस्पर्धी पाडिप्फद्धी । प्रतिनिवृत्तम् पडिणिअत्तं । प्रतिकरोति पडिकरेइ । प्रतिपत् पडिवआ। प्रतिश्रुत् पडंसुआ। प्रतिमा पडिमा । प्रभृति पहुडि । मृतकम् मड। भिन्दिपालः भिण्डिवालो। पताका पडाआ। प्राभृतम् पाहुडं। विभीतकः बहेडओ। व्यापूतः वावडो। कन्दरिका कण्डरिआ (यानी) औषधविशेष । हरीतकी हरडई। इत्यादि । प्रतीप, इत्यादि शब्दोंको छोडकर, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण इन शब्दोंमें यह वर्णान्तर नहीं होता।) उदा.-प्रतीपम् पईवं । प्रतिज्ञा पइण्णा। संप्रति संपइ । प्रतिसमयम् पइसमअं। प्रतिष्ठा पइट्टा। प्रतिष्ठानम् पइट्ठाणं । इत्यादि ।। ३३ ॥
दंशदहोः ॥ ३४॥
दंशति और दहति धातुओंमें त-वर्गका ड होता है । उदा.-डंसह । डहइ ॥ ३४ ॥
दम्भदरदर्भगर्दभदष्टदशनदग्धदाहदोहददोलादण्डकदने तु ॥ ३५ ॥
___दम्भ, इत्यादि शब्दोंमें त-वर्गका ड विकल्पसे होता है। उदा.डम्भो दंभो। डरो दरो । डब्भो दब्भो । गड्डहो गद्दहो। डट्ठो दट्ठो। डसणं दसणं । डड्ढो दड्ढो । डाहो दाहो। डोहलं दोहलं । डोला दोला। डंडो दंडो। कडणं कदणं । भीति अर्थ होनेपरही, दर-शब्दमें (द का ड होता है), अन्यत्र (द वैसाही रहता है।) उदा.-दरदलिअं। दोहद शब्दमें, दम्भ, इत्यादिके साहचर्यसे आद्य (द) काही (ड होता है ।) ॥ ३५॥ तुच्छे चच्छौ ॥ ३६॥
तुच्छ शब्दमें त-वर्गके चकार और छकार विकल्पसे होते हैं। उदा.-चुच्छं छुच्छं ।। ३६ ।।
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