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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
उल् कण्डूयहनूमद्वातूले ।। ६९ ।।
कण्डूयति धातुमें, तथा हनुमत् और वातूल शब्दोंमें आद्य ऊका लित् (नित्य) उ होता है। उदा.-कंडुअइ । हणुमंतो । वाउलो ॥ ६९ ॥ वा मधूके ॥ ७० ॥
मधूक शब्दमें ऊ का उ विकल्पसे होता है | उदा.-महुअं महूअं ॥७॥ इदेन्नपुरे ॥ ७१ ।।
(इस सूत्रमें १.२.७० से) वा शब्दको अनुवृत्ति है। नूपुर शब्दमें ऊ के इ और ए विकल्पसे होते हैं । उदा.-णिउरं णेउरं 'उरं ॥ ७१ ॥ ओल् स्थूणातूणमूल्यतूणीरकूर्परगुडूचीकूष्माण्डीताम्बूलीषु ॥७२॥
(स्थूणा, तूण, मूल्य, तूणीर, कूर्पर, गुडूची, कूष्माण्डी, ताम्बूली) इन शब्दोंमें ऊ का लित् (नित्य) ओ होता है। उदा.- थोणा। तोणं । मोल्लं । तोणीरं । कोप्परं । गलोई । कोहंडी। तम्बोली । बहुलका अधिकार होनेसे, स्थूणा और तूण शब्दोंमें विकल्पसे (ओ) होता है। उदा.-थूणा । तूणं ॥ ७२ ॥ ऋतो ऽत् ।। ७३ ।।
आद्य ऋकारका अ होता है। उदा.-घृतम् घरं। तृणम् तणं । कृतम् कअं । वृषभः वसहो । मृगः मओ ॥ ७३ ॥ आद्वा मृदुत्वमृदुककृशासु ॥ ७४ ॥
(इस सूत्रमें १.२.७३ से) ऋतः पदकी अनुवृत्ति है। (मृदुत्व, मृदुक, कृशा) इन शब्दोंमें आद्य ऋकारका आ विकल्पसे होता है। उदा.-माउत्तं मउत्तं । माउअं मउअं। कासा कसा ॥ ७४ ॥ इल् कृपगे ।। ७५ ।।
कृप इत्यादि शब्दोंमें आद्य क्र का इ होता है । (सूत्रके इल् में) लू इत् होनेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता। उदा.-किवो कृपः । णिवो नृपः। किवा कृपा। किवणो कृपणः। किवाणो कृपाणः। किसो कृशः। किसाणू कृशानुः । किई कृतिः । विसो वृषः। मूषिओ मूसिकः (?)। किसरो कृसरः (यानी) एक विशिष्ट विलेप । किच्छ कृच्छ्रम् । किसओ कृषकः । तिसिओ तृषितः । इसी
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