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त्रिविक्रम - प्राकृत व्याकरण
इतेः ॥ ६ ॥
(इस सूत्र में १.२.५ से) 'पदात् ' पद (अध्याहृत) है । पदके आगे होनेवाले इति शब्द के आद्य (स्वर) का लोप होता है । यह नियम पृथक्रूपसे कहा है, इसलिए ( यहाँका वर्णान्तर) नित्य होता है | उदा.किंमिति किं ति । यदिति जं ति । तदिति तं ति । युक्तमिति जुत्तं ति । पदके आगे ( होनेपरही इति के आद्य स्वरका लोप होता है, अन्यथा नहीं । ) उदा. - इअ विंझगुहाणिलआए, इति विन्ध्यगुहानिलयायाः || ६ ||
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तोऽचः ॥ ७ ॥
(सूत्रमेंसे) अचः यानी स्वरात् । स्वरके आगे होनेवाले इति शब्द के आथ इकारका तकार होता है । उदा - तह त्ति तथेति । झत्ति झटिति । पिओ त्ति प्रिय इति । स्वरके आगे होनेवाले, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण स्वरके आगे इति न हो तो यह वर्णान्तर नहीं होता ।) उदा. - किं ति ॥ ७ ॥ शोलुप्यवरशोर्दिः ॥ ८॥
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(सूत्रमेंसे) शोः यानी शुके अर्थात् श्, ष, स् इन वर्णोंके | (सूत्रके); लुप्यवरशोः का अभिप्राय है - लुप्त हुए यू, व्, र्, श्, ब् और सू इनके । आदि स्वरका दि यानी दीर्घ होता है । ( अर्थ यह हुआ - ) ( व्यंजनोंके )संयोगमें पहले या अनन्तर ( उपर्यधो वा) रहनेवाले य्, व्, र्, श्, ष, स इनका लोप होनेपर, जो श, ष् स् अवशिष्ट रहते हैं, उनके आथ स्वरका दीर्घ (स्वर) होता है, यह अर्थ है । उदा. -- शू से संयुक्त रहनेवाले यू का लोप होनेपर - कश्यपः कासवो । आवश्यकम् आवासयं । पश्यति पासइ । ( श् से संयुक्त रहनेवाले) वू का लोप होनेपर - अश्व : आसो । विश्वास:: वीसासो | विश्वसिति वीससइ । ( शू से संयुक्त रहनेवाले) र् का लोप होनेपर - विश्रामः वीसामो । विश्राम्यति वीसामइ । मिश्रम् मीस । संस्पर्श : संफासो । (शू से संयुक्त रहनेवाले) शू का लोप होनेपर - दुश्शासन : दूसासणो । मनश्शिला मणासिला । (बू से संयुक्त रहनेवाले) यू का लोप होनेपर - शिष्यः:
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