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निष्प्रती ओवार प्रति ये दो म ओ और पार ओमालयं
द्वितीयः पादः निष्प्रती ओत्परी माल्यस्थोर्वा ।।१।।
निर् और प्रति ये दो उपसर्ग; उनके आगे माल्य शब्द तथा स्था धातु आगे हों तो उनके यथाक्रम ओ और परि ऐसे दो रूप विकल्पसे होते हैं। उदा.-ओमलं णिम्मल्लं निर्माल्यम् । ओमालयं वहइ । परिहा पइट्ठा प्रतिष्ठा । परिट्टि पइट्ठिअं प्रतिष्ठितम् ॥ १।। आदेः ।।२।
(सूत्रमेंसे) आदेः (पहले वर्णका) पदका अधिकार 'अस्तोरखोरचः' (१.३.७) इस सूत्रके पूर्वसूत्रतक अविशेषतः है, ऐसा जाने ।।२।। लुगव्ययत्यदाद्यात्तदचः ॥ ३ ॥ । अव्यय और त्यत, इत्यादि सर्वनाम इनके आगे (स्वरादि) अव्यय और त्यत्, इत्यादि सर्वनाम जब आते हैं, तब तदचः(अर्थात् आगे आनेवाले) अव्यय तथा सर्वनाम इनमेंसे आद्य अच् (स्वर) का विकल्पसे (बहुलं) लोप होता है। उदा.-अम्हे एत्थ अम्हेत्थ, वयमत्र । जइ इमा जइमा, यदीमाः। जइ अहं जइहं, यद्यहम् ॥३॥ बालाब्बरण्ये ॥ ४ ॥
(इस सूत्रमें १.२.३ से) लुक् शब्दकी अनुवृत्ति है। अलाबु तथा अरण्य इनमें आद्य (स्वर) का लोप विकल्पसे होता है । उदा.-लाऊ अलाऊ। रणं अरण्णं ।। ४ ॥ ।। ४ ।।
. अपेः पदात् ॥ ५ ॥
(इस सूत्रमें १.२.४ से) वा शब्द (अध्याहृत) है। किसी भी पदके आगे आनेवाले अपि उपसर्गके आद्य (स्वर) का लोप विकल्पसे होता है। उदा.-किं पि किमवि । तं पि तमवि । केण विकेणावि। कहं पिकहमवि। पदके (आगे आनेवाले), ऐसा क्यों कहा हैं ? (कारण पदके आगे अपि न हो तो आद्य स्वरका विकल्प से लोप नहीं होता।) उदा.-अवि णाम ॥ ५॥
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