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हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा.२ सीसो। पुष्यः पूसो। मनुष्यः मणसो। ( से संयुक्त रहनेवाले) व का लोप होनेपर-विष्वाणः वीसाणो। विष्वक् वीसु। (पू से संयुक्त रहनेवाले) र् का लोप होनेपर-कर्षकः कासओ। वर्षा वासा । (ष से संयुक्त रहनेबाले) ५ का लोप होनेपर-निषिक्तः णीसित्तो। स् से संयुक्त रहनेवाले य का लोप होनेपर-सस्यम् सासं । कस्यचित् कासइ । (स् से संयुक्त रहनेवाले) व् का लोप होनेपर-विकस्वरः वीआसरो। निस्स्वः णीसो। (स से संयुक्त रहनेवाले) र का लोप होनेपर-उस्रः ऊमो । विस्रम्भः वीसंभो। (स से संयुक्त रहनेवाले) स् का लोप होनेपर-निस्सहः णीसहो । बहुलके अधिकारसे, व का लोप होनेपर कचित् अन्य (दूसरे) ही आद्य स्वरका दीर्घ होता है। उदा.-जिह्वा जीहा । यहाँ 'दीघीन्न' (१.४.८७) ऐसा प्रतिषेध होनेसे, 'शेषादेशस्याहोऽचोऽखोः' (१.४.८६) सूत्रमें कहा गया द्वित्व नहीं होता ।। ८ ।। हे दक्षिणेऽस्य ।। ९॥ . (इस सूत्रमें १.२.८ से) दिः पदकी अनुवृत्ति है । दक्षिण शब्दमें, क्ष का हे यानी हकार होनेपर, अ का अर्थात् अ-वर्णका दीर्घ होता है। उदा.-दाहिणो। हकार होनेपर, ऐसा क्यों कहा है । (कारण यदि क्ष का हकार न हो तो यह वर्णान्तर नही होता।) उदा.-दक्खिणो ।। ९॥ तु समृद्धयादौ ॥ १०॥
(इस सूत्र में १.२.९ से) अस्य पदकी अनुवृत्ति है। समृद्धि, इत्यादि शब्दोंमें आद्य अ-वर्णका दीर्घ विकल्पसे होता है। उदा.-- सामिद्धी समिद्धी समृद्धिः । पाडिसिद्धी पडिसिद्धी प्रतिसिद्धिः । सारिच्छो सरिच्छो सदृक्षः । माणसी मणसी मनस्वी। पासुत्तो पसुत्तो प्रसुप्तः । पाडिप्फद्धी पडिप्द्धी प्रतिस्पर्धी । पाडिवआ पडिवआ प्रतिपद् । पावासू पवासू प्रवासी। आहिआई अहिआई अभिजातिः । पाअडं पअडं प्रकटम् । पाअ पअ प्रकृतम् । पासिद्धी पसिद्धी प्रसिद्धिः । पारकेरं परकर पारक,
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