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________________ हिन्दी अनुवाद - अ. ३, पा. ४ ओत्सौ पुंसि तु ॥ ३ ॥ अपभ्रंश में पुल्लिंग में होनेवाली संज्ञाके (अन्य ) अकारका, सु (प्रत्यय) आगे रहनेपर, ओ विकल्प से होता है । उदा - रामो | घडो । पडो ॥ ३ ॥ अगलिअनेह निवट्टाई जोअणलक्खु वि जाउ | T वरिससरण | जो मिलइ सहि सो सोक्खहँ ठाउ ॥१०२॥ (हे. ३३२.१) ( अगलित स्नेह निर्वृतानां योजनलक्षमपि यातु | वर्षशतेनापि यो मिति सखि स सौख्यानां स्थानम् । । ) T जिनका स्नेह नष्ट नहीं हुआ है ऐसे स्नेह से पूर्ण व्यक्तियों के बीच लाख योजनों का अंतर होने दो। हे सखी, स्नेह नष्ट न होनेपर) सैंकडों परभी जो मिलता है वह सौख्योंका स्थान है 1 पुंसि (पुल्लिंग में रहनेवाले), ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण पुल्लिंगमें न होनेपर यहाँ कहा हुआ ओ नहीं होता) | उदा. - अंगहिँ अंगु न मिलिउँ हलि [ ५८ ] ।। ए भिसि ।। ४ ।। अपभ्रंश भिस् प्रत्यय आगे होनेपर, (शब्दों के अन्त्य) अकारका ए विकल्पसे होता है । उदा. रामेहिं । घडेहिं । (विकल्पपक्षमें ) - गुणहिँ व संपइ कित्ति पर [ ४५ ] ।। ४ ।। Jain Education International टि ।। ५ ।। अपभ्रंशमें टा-वचन आगे होनेपर, (शब्दों के अन्त्य) अ का ए होता है । (यह सूत्र ३.४.४ से) पृथक् कहा जानेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता उदा. - रामेण । घडेण ॥ ५ ॥ जे दिण्णा दिअहडा दइऍ पवसंतेण । ताण गणन्तिऍ अंगुलिउ जज्जरिआउ नहेण ॥ १०३ ॥ ( =हे. ३३३.१) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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