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________________ ર૬ર त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण हे बिटिया, मैंने तुझसे कहा था कि बाँकी दृष्टि मत कर । (कारण) हे बिटिया, (यह बाँकी दृष्टि) नोकदार भालेके समान (दूसरोंके) हृदयमें बैठकर (पैठकर) मारती है। जस् (प्रत्यय आगे रहनेपर)एई ति घोडा एह थलि एइ ति निसिआ ख् ग्ग । एत्थु मुणीसिम जाणिअइ जे णवि वालइ बग्ग ॥१००॥ (=हे.३३०.४) (एते ते घोटका एषा स्थली एते ते निशिताः खड्गाः । अत्र मनुष्यत्वं ज्ञायते ये नापि वलयन्ति वल्गाः ।) ये वे घोडे। यह (वह युद्ध-) भूमि । ये वे तीक्ष्ण खड्ग । यहींपर उनके पौरुषकी परीक्षा होती है जो घोडेकी बाग पीछे नहीं खींचता। इसीप्रकार अन्य विभक्तियोंमें उदाहरण लेने हैं। स्वम्यत उत् ।। २॥ अपभ्रंशमें सु और अम प्रत्यय आगे होनेपर, (शब्दोंके अन्त्य) अ का उकार होता है। उदा.-र'मु ! घडु । पडु ॥ २॥ दहमुहु भुवणभअंकरु तोसिअसंकरु णिग्गउ रहवरि चडिअउ । चउमुहु छम्मुहु झाइ वि एकहिँ लाइवि णावइ दइवें घडिअउ ।।१०१॥ (=हे. ३३१.१) (दशमुखो भुवनभयंकर स्तोषितशंकरो निर्गतो रथोपरि आरूढः । चतुर्मुखं षण्मुग्वं ध्यात्वा एकत्र लगित्वा इव दैवेन घटितः ।।) भुवनभयंकर रावण शंकरको संतुष्ट करके रथपर आरूढ होकर निकला। मानो देवोंने ब्रह्मदेव और कार्तिकेय इनका ध्यान करके तथा उन (दोनों)को एकत्र करके उसे (रावणको) बनाया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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