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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. ३ २५५ अरे मूर्ख, दिनोंमें जो प्राप्त किया है उसे खा। एक दाम (द्रम्म, पैसा) भी मत संचित कर। कारण कोई भय ऐसा आता है कि जिससे जीवनकाही अन्त होता है। मा भैषीः इसका स्त्रीलिंगमें (प्रयुक्त) मब्भीसडी (आदेश)सत्थावत्यहँ आलवणु साहु वि लोउ करेइ । आदनहं मब्भीसडी जो सज्जणु सो देइ ॥८०॥ (=हे.४२२.१६) (स्वस्थावस्थानामालपनं सर्वोऽपि लोकः करोति । आर्तानां मा भैषीरिति यः सज्जनः स ददाति ।) स्वस्थ अवस्थामें रहनेवालोंसे वार्तालाप (आलपन) सभी (लोग) करते हैं। (पर) पीडित लोगोंसे 'डरो मत' ऐसा केवल जो सज्जन है वहीं कहता है। अवस्कन्दको दडवड (आदेश)चलेंहि चलंतहिँ लोअहिँ जे त दिट्ठा बालि। तहिँ मअरद्धअदडवडउ पडइ अपूरइ कालि ॥८१।। (=हे.४२२.१४) (चलैश्चञ्चलैलोचनैयें त्वया दृष्टा बाले। तेषु मकरध्वजावस्कन्दः पतत्यपूर्ण काले ॥) हे बाले, तेरे घूमनेवाले चंचल कटाक्षोंसे जो देखे गए हैं उनपर असमयही मदनका हमला हो जाता है। आत्मीयको अपण (आदेश) फोडेंति जे हिअडउँ अप्पणउँ [४९] । गाढको निच्चट्ट (आदेश)विहवे कस्सु थिरत्तणउँ जोव्वणि कस्सु मरटु । सो लेखडउ पठाविअउ जो लग्गइ निच्चटु ।। ८२ ॥ (=हे. ४२२.६) (विभवे कस्य स्थिरत्वं यौवने कस्य गर्वः । स लेखः प्रस्थाप्यतां यो लगति गाढम् ।।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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