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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. ३ २० दिवा दिवे ॥४३॥ दिवा ऐसा अव्यय दिवे ऐसा हो जाता है । उदा.-दिव दिवे गंगण्हाणु [८] ।। ४३॥ सह सहूं ॥४४॥ सह ऐसा अव्यय सहुं ऐसा हो जाता है ।। ४४ ।। जइ पवसते स न गय न मुअ विओएं तस्सु । लज्जिज्जइ संदेसडा देंती सुहअजणस्सु ।।६५।। (=हे. ४१९.३) (यदि प्रवसता सह न गता न मृता वियोगेन तस्य । लज्जते संदेशान् ददती सुभगजनस्य ।।) चकि प्रवासको जाते हुए प्रियकरके साथ (मैं) न गई और न उसके वियोगसे मरी। (इसलिए उस) प्रियकरको (सुभगजन) संदेश देती हुई मैं शरमाती हूँ। मा मं ॥ ४५ ॥ मा ऐसा अव्यय में ऐसा हो जाता है। उदा.मं धणि करहि विसाउ (=हे. ३८५.१)। (मा धन्ये कुरु विषादम्)। हे सुंदरी विषाद मत कर ॥४५।। प्रायोग्रहण होनेसे, (मा ऐसा भी रूप प्रयोगमें पाया जाता है)। उदा.माणि पणट्ठइ जइ ण तणु तो देसडा चइज्ज । मा दुज्जणकरपल्लयहिँ दंसिज्जन्तु झमेज्ज ।।१६।। (=हे. ४१८.४) (माने प्रनष्टे यदि न तनुं ततो देशं त्यजेत् । म' दुर्जनकरपल्लवैर्दश्यमानो भ्रमेत् ।।) मान नष्ट होनेपर यदि शरीर नहीं तो देशको छोड दे। दुर्जनोंके करपल्लवोंसे दिखाये जाते न घुमे। कुतः कउ कहंतिहु ।। ४६ ।। अपभ्रंशमें कुतः ऐसा अव्यय कउ और कहं तिहु ऐसा हो जाता है। उदा.-कउ गदु कह तिहु गदु, कुतो गतः।। ४६।। . .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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