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हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. ३
२३९ जिनवरोंके दीर्घ नयन और लादण्य इनसे युक्त मुँह देखकर, अतिमत्सरसे भरा हुआ लवण मानो अग्निमें प्रवेश करता है।
नाइ (आदेशका उदाहरण)वलआवलिनिवडणभऍण धण उद्धब्भुअ जाइ । वल्लभविरहम्हादहहु गाह गवेसइ नाइ ।।४०॥ (=हे. ४४४.२) (वलयावलीनिपतनभयेन धन्या ऊभुजा याति ।। वल्लभविरहमहाहृदस्य गाधत्वमन्विष्यतीव ।।)
कंकणसमूह गिरनेके डरसे, सुंदरी (धन्या) हाथ ऊपर करके जाती है मानो वल्लभके विरहरूपी महासरोवरका थाह ढूंढती है ।
तणेण रेसिं रेसि तेहि केहिं तादर्थे ।। २५ ॥
अपभ्रंशमें तादर्थ्य (उसके लिए, यह अर्थ) दिखानेके समयपर तणेण, रेसिं. रोसि,तेहिं, केहि ऐसे पाँच निपात प्रयुक्त करें। उदा.-रामतणेण रामरोस रामरोस रामतेहिं रामके हँ णमोकारो, रामार्थ नमस्कारः ॥ २५ ॥ ढोल्ला ऍह परिहासडी अइ भण कवणइ देसि ।। हउँ झिज्जउँ तउकेहि पिअ तुहुँ पुणु अन्नहिरेसि ॥४१॥ (-हेम.४२५.१)
(विट एष परिहासः अयि भण कस्मिन् देशे ।
अहं क्षीये तवाथै प्रिय त्वं पुनरन्यस्या अर्थे ।) ___ अरे प्रिय, किस देशमें यह परिहास (किया जाता है, बताओ। हे प्रियकर, मैं तेरे लिए क्षीण होती हूँ, (पर) तू दूसरी के लिए (क्षीण होता है)।
वड्डप्पणहो तणेण [२१|इसीप्रकार तेहि और रोंसे के उदाहरण लेने हैं। स्वार्थे डुः पुनर्विनाध्रुवमः ॥ २६ ॥
अपभ्रंशमें पुनः, विना, ध्रुवम इनके आगे स्वार्थे डित् उ ऐसा प्रत्यय होता है। उदा.-पुणु होइ, पुनर्भवति । पावु विणु, पापं विना । धुवु जग्मु, रुवं जन्म ॥२६॥ सुमरिज्जइ तं वल्लहउँ जं वीसरइ मणाउँ । जहँ पुणु सुमरणु जाउँ गउँ तहा हहों किं णाउँ ॥ ४२॥ (=हे. ४२६.१)
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