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________________ २२८ त्रिविक्रम-प्राकृत-ध्याकरण जणु (आदेशका उदाहरण)निरुतमरसु पिएं पिअवि जणु [९] । यह पीछेही कहा गया है। नं (आदेशका उदाहरण) मुहकबरिबंध तह सोह धरहिं नं मल्लजुज्झु ससिराहु कर हैं। तहे सोहहिँ कुरल भमरउलतुलिअ नं तिमिरडिंभ खेल्लंति मिलिअ ॥ ३७ ॥ (-हे. ३८२.१) (मुखकबरीबन्धौ तस्याः शोभा धरतः इव मल्लयुद्धं शशिराहू कुरुतः । तस्याः शोभन्ते कुरला भ्रमरकुलतुलिता इव तिमिरडिम्भाः क्रीडन्ति मिलित्वा ।।) उस (सुंदरी)के मुँह और केशबंध (ऐसी) शोभा धारण करते हैं मानो चंद्र और राहु मल्लयुद्ध करते हैं । भ्रमरसमुदायके समान उसके धुंघराले बाल ऐसे शोभते हैं मानो अंधकारके बच्चे मिलकर खेल रहे हैं। नइ (आदेशका उदाहरण)रविअस्थमणसमाउलेण कंठट्ठिअउ ण छिण्णु । चक्कें खडु मुणालिअहि नइ जीवग्गल दिन्नु ॥ ३८॥ (-हे. ४४४.१) (रव्यस्तमनसमाकुलेन कण्ठस्थितो न च्छिन्नः। चक्रेण खण्डो मृणालिकाया इव जीवार्गलो दत्तः ।) सूर्यास्तके समय व्याकुल चक्रवाक (पंछी)ने मृणालिका (कमलके देठ)का टकडा कंठमें डाला पर उसे नहीं तोडा (खाया)। मानो जीवको बाहर न निकल देनेके लिए अर्गला दे दी। नावइ (आदेशका उदाहरण)पेक्षेविणु मुहुँ जिणवाह दीहरणअणसलोणु । नावइ गरुमच्छरभरिउँ जलणि पवेसइ लोणु ॥३९।। (=हे. ४४४.३) (दृष्ट्वा मुखं जिनवराणां दीर्घनयनसलावण्यम् । इव गुरुमत्सरभरितं ज्वलने प्रविशति लवणम् ॥) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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