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________________ हिन्दी अनुवाद- .अ. ३, पा. २ जो व्रजेः || ३८ ॥ मागधी में व्रजति धातुमेंसे जकारका बर् होता है । (जकारका) या होता है (देखिए ३.२.३९), इस नियमका प्रस्तुत नियम अपवाद है । उदा. - वञ्ञदि । वञ्ञदे ॥ ३८ ॥ २१९ जयद्यां यः ॥ ३९ ॥ मागधीमें जकार, यकार और चकार इनका यकार होता है । उदा.ज-जानाति याणादि । जनपदः यणवए । दुर्जनः दुय्यणे । गर्जति गय्यदि य-यानपात्रम् याणवत्तं । द्य मद्यं मय्यं । अद्य किल विद्याधरः आगतः, अय्य. किल विय्याहले आअदे । (यहाँ ) यका य होता है, यह कहनेका कारण 'आदेर्ज : ' (१.३.७४) सूत्रमेंसे नियमका बाध हो ।। ३९ ।। ठट्टौ स्टम् ।। ४० ।। मागधीमें षकारसे आक्रान्त ऐसा जो ठकार (= ४) और द्विरुक्त टकार [=T), इनका सकारसे आक्रान्त टकार [=स्ट] होता है | उदा.ठ-सुष्ठु कृतम्, शुस्टु कदं । कोष्ठागारम् कोस्टागालं । दृ- पट्टम् भट्टारिका भस्टालिआ । भट्टः भस्टे । भट्टिनी भस्टिणी ॥ ४० ॥ परटं । स्थर्थौ स्तम् ।। ४१ ॥ मागधीमें स्थ और थे इनका सकारसे आक्रान्त तकार (=स्त ) होता है | उदा. स्थ उपस्थितः उवस्तिदे | सुस्थितः शुस्तिदे । र्थ अर्थपतिः अस्तवदी । सार्थवाहः शस्तवाहे ॥ ४१ ॥ - चिष्ठस्तिष्ठस्य ।। ४२ ।। मागधीमें, स्था धातुका जो तिष्ठ ऐसा आदेश है, उसको चिष्ट ऐसा आदेश होता है । उदा. चिष्ठदि । चिष्टदे ॥ ४२ ॥ Jain Education International नो नणोः पैशाच्याम् ॥ ४३ ॥ पैशाची भाषा में नकार और णकार इनका नकार होता है । उदा.पनमत पनयष्पकुवितं, प्रणमत प्रणयप्रकुपितम् । गुनगनजुत्तो, गुणगणयुक्तः For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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