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-प्राकृत-व्याकरण
स्कः प्रेक्षाचक्षेः ॥ ३४ ॥
मागधीमें प्रेक्ष और आचक्ष धातुओंमेंसे क्ष का सकारसे आक्रान्त ककार (=स्क) होता है। 'क्षः कः'(३.२.३३) इस नियमका यह नियम अपवाद है। उदा.-पेस्कदि । आअस्कदि ।। ३४ ॥ सः सपोः संयोगेऽग्रीष्मे ॥ ३५ ॥
मागधीमें संयोगमें होनेवाले सकार और षकार इनका सकार होता है; किन्तु अग्रीष्मे यानी ग्रीष्म शब्दमें नहीं होता। (श्, ष, स ये)प्रथम स्थानपर (ऊर्ध) होनेपर, उनका लोप होता है [देखिए- १.४ ७७), इत्यादि नियमोंका प्रस्तुत नियम अपवाद है। उदा.-स-पस्खल दि । हस्ती। बहस्पदी । मस्कली। विस्मये। ष-शुकदारु शुस्कदालु । वष्टं करत शष्पकवलः शस्पकवले । धनुष्काण्डं धणुस्कण्डं । अग्रीष्मे (ग्रीष्म शब्दको छोडकर), ऐसा क्यों कहा है ? (कारण ग्रीष्ममें ष का स नहीं होता)। उदा.-गिम्हवाशले ॥ ३५॥ स्रोः श्लौ ।। ३६ ॥
मागधीमें स्रोः यानी सकार और रेफ इनके यथाक्रम शकार और लकार होते हैं। उदा.-स-समः शमे। हंसः हंशे । श्रुतिः शुदी। शोभनम् (सोहणं) शोहणं । र-नरः नले। कर: कले। दोनों (स और र)-सारसः शालशे। पुरुषः पुलिशे ॥ ३६॥ न्यण्यज्ञञ्जां अर् ॥ ३७॥
___ मागधीमें न्य, ण्य, ज्ञ और ज इनका व यानी प्रकार होता है। (सूत्र मेंसे भर में) र् इत् होनेसे, (न का) द्वित्व होता है। उदा.-न्यअभिमन्युकुमारः अहिमञ्जुकुमाले। कन्यका कक्षाआ। सामान्यं शामउने। ण्य-पुण्यवान् पुअवन्ते । अब्रह्मण्यम् अब्बम्हनं । ज्ञ-प्रज्ञा पञआ। अअञ्जलिः अमली। धनञ्जयः धणञ्जए। पातञ्जलः पाअमले ॥ ३७॥
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