SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२ त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण स्रंसेहँसडिम्भौ ॥११६ ॥ ___ 'संसु अवस्रंसने मेंसे संस् धातुको ल्हस, डिम्भ ऐसे आदेश विकल्पसे होते हैं। उदा.-ल्हसइ । परिल्हसइ । परिल्हसणं । डिम्भइ । (विकल्पपक्षमें)संसइ ।।११६ ।। मृक्षेश्वोप्पडः।। ११७ ।। मृक्षति धातुको चोप्पड ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.चोप्पडइ। (विकल्पपक्ष)-मक्खइ ॥ ११७ ॥ विसट्टो दलेः ॥ ११८ ॥ ___ दलति धातुको विसदृ ऐसा सादेश विकल्पसे होता है। उदा.विसइ। (विकल्पपक्षमें). दलइ ।। ११८ ।। बसेर्वज्जडरौ ।। ११९॥ __ त्रसति धातुको वज्ज, डर ऐसे आदेश विकल्पसे होते हैं। उदा.वज्जइ। डरइ । (विकल्पपक्षमें)-तसइ ।। ११९ ।। वोज्जो वीजेश्च ।। १२० ॥ 'वीज व्यजने मेंसे वीज् धातुको, और (सूत्रमेंसे) चकारके कारण त्रस् (त्रसि) धातुको, वोज्ज ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा. वोज्जइ । विकल्पपक्षमें-बीजइ । तसइ ।। १२० ।। गवेषेपत्तगमेसडुण्डुल्लडण्डोलाः ।। १२१ ।। गवेष धातुको धत्त, गमेस, डुण्डुल्ल, डण्डोल ऐसे चार आदेश विकल्पसे होते हैं। उदा.-घत्तइ। गमेसइ । डुण्डुल्लइ । डण्डोलइ । विकल्पपक्षमें-गवेसइ ।। १२१ ।। तक्षेश्चञ्छरम्परम्काः ।। १२२ ।। __ 'तक्ष् तनूकरणे'मेंसे तक्ष् धातुको चञ्छ, रम्प, रम्फ ऐसे तीन आदेश विकल्पसे होते हैं। उदा.-चञ्छइ । रम्पइ । रम्फइ। विकल्पपक्षमें-तक्खइ । स्पृहादिगणमें (तक्ष होनेसे, क्ष का) छ होनेपर-तच्छइ ।। १२२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy