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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. १ असावक्खोडः ।। ११० ॥ असि विषयके बारेमें कर्षति धातुको अक्खोड ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-अक्खोडइ (यानी) असि कोषात् कर्षति ॥ ११० ॥ उल्लसेरूसलोसुम्भारोअणिल्लसगुञ्जोल्लपुलआआः।। १११ ॥ _ 'लष कान्तौ से लस् धातुके पीछे उत् (उपसर्ग) होनेपर, उसको ऊसल, ऊसुम्भ, आरोअ, जिल्लस, गुजोल्ल, पुलआअ ऐसे छः आदेश विकल्पसे होते हैं। उदा.-ऊसलइ। ऊसुम्भइ। आरोअइ। णिल्लसइ । गुजोल्लइ । -हस्व होनेपर-गुजुल्लइ। पुलआअइ! विकल्पपक्षमें-उल्लसइ ॥ १११ ।। संदिशोऽप्पाहः ।। ११२ ।। 'दिश अतिसर्जने' मेंसे दिश् धातुके पीछे सम् (उपसर्ग) होनेपर, उसको अप्पाह ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-अप्पाहइ । (विकल्पपक्षमें)-संदिसइ ।। ११२ ।। ग्रसेर्घिसः ।। ११३ ॥ 'ग्रस अदने' से ग्रस् धातुको घिस ऐसा आदेश (विकल्पसे) होता है। उदा.-घिसइ । (विकल्पपक्षमें)-गसइ ॥ ११३ ॥ भासेर्भिसः ॥११४ ।। 'भास दीप्त से भास धातुको भिस ऐसा आदेश विकल्पसे) होता है । उदा.-भिसइ । (विकल्पपक्षमें)-भासइ ।। ११४ ।। प्रतीक्षेविहिरविरमालसामआः ।। ११५ ।। 'ईक्ष दर्शने मेंसे ईक्ष धातुके पीछे प्रति (उपसर्ग) होनेपर, उसको विहिर, विरमाल, सामअ ऐसे तीन आदेश विकल्पसे होते ह । उदा.विहिरइ। विरमालइ । सामअइ। विकल्पपक्षमें-पडिक्खइ ॥ ११५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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