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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
आक्रामिरोहावोत्थारच्छन्दान् ।। ९४ ।। __ 'क्रमु पाद विक्षेपे' मेंसे क्रम् धातुके पीछे आ (उपसर्ग) होनेपर, उसको ओहाव, उत्थार, छन्द ऐसे तीन आदेश प्राप्त होते हैं। उदा.-ओहावइ । उत्थारइ । छुन्दइ। (विकल्पपक्षमें)-अक्कमइ ।। ९४ ।। विश्रमणिप्पा ।। ९५।।
श्रमु तपसि खेदे च मेंसे श्रम् धातुके पीछे वि (उपसर्ग) होनेपर, उसको णिप्पा ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-णिप्पाइ । (विकल्पपक्षमें) वीसमइ ।। ९५ ॥ डुण्डुल्लडुमडण्डल्लभमाडभम्मभमुडतलअण्टझण्टगुमटिरिटिल्लपरिपरघमचकमभमडघसझम्पडसा भ्रमेः ।। ९६ ।।
'भ्रम अनवस्थाने' मेंसे भ्रम् धातको डुण्डुल्ल, डुम, डण्डल्ल, भमाड, भम्म, भमुड, तलअण्ट, झण्ट, गुम, टिरिटिल्ल, परि, पर, घम, चक्कम, भमड, घस, झम्प, डुस, ऐसे अठारह आदेश विकल्पसे होते हैं। उदा.डुण्डुल्लइ। डुमइ । डण्डल्लइ । ममाडइ । भम्मइ । भमुडइ। तलअण्टइ | झण्टइ गुमइ । टिरिटिल्लइ । परिइ । परइ । धमइ । चक्कमइ । भमडइ । घसइ । झम्पइ । डुसइ। विकल्पपक्षमें-भमइ ॥ ९६ ॥ गमिरणुवज्जावज्जसावकुसोक्कुसाइच्छाईअवहरावसेहवडअवरिअलवरिअल्लबोल्लणिारणासवच्छड्डणिणणिम्महपच्छन्दणिलुक्करम्भणिणिवहान् ।। ९७।। ___ गम्लु गतौ'मेंसे गम् धातुको अणुवज्ज, अवज्जस, अक्बुस, उक्कुस, अइच्छ, अई, अवहर, अवसेह, वडअ, वरिअल, वरिअल्ल, वोल्ल, णिरिणास, वच्छड्ड, पिण, णिम्मह, पच्छन्द, णिलुक्क, रम्भ, णि, णिवह, ऐसे इकिस आदेश विकल्पसे प्राप्त होते हैं। उदा.-अणुवज्जइ । अवज्जसइ । अक्कुसइ। उक्कुसइ । अइच्छइ। अईइ। अवहरइ। अवसेहइ । वडअइ। वरिअलइ । वरिअल्लइ । वोल्लइ । णिरिणासइ । वच्छड्डइ । णिणइ । णिम्महइ ! पच्छन्दइ।
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