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________________ हिन्दी अनुवाद - अ. ३, पा. १ १९७ बहुवचन कहे जानेसे, विनिःश्वसिति इत्यादि धातुओं को शङ्खर ऐसा आदेश होता है ॥ ८८ ॥ , रभिराङो रम्भडवौ ॥ ८९ ॥ 'रभ रामस्ये 'मेंसे रम् धातु आ (उपसर्ग ) के आगे होनेपर, उसको रम्भ और डब ऐसे आदेश विकल्प से प्राप्त होते हैं | उदा. आरम्भइ | आडवाइ ( विकल्प पक्ष में ) - आरहइ ॥ ८९ ॥ भाराक्रान्ते नमेर्निंसुः ।। ९० ।। 'मु प्रहृत्वे शब्दे' में से नम् धातुको भाराकान्त (मनुष्य) कर्ता होनेपर, निसु ऐसा आदेश विकल्पसे होता है । उदा. - निसुडइ, भाराक्रान्तः नमति, ऐसा अर्थ ।। ९०॥ उब्भाव वेल्लणि सरकोड्डुमसक्खुड्डखेड्डमोट्टाअकिलिकिञ्चा रमतेः १९१ ॥ " 'रमु क्रीडायाम्' में से रम् धातुको उब्भाव, वेल्ल, णिसर, कोड्डुम सक्खुड्ड, खेड, मोट्टा, किलिकिञ्चि ऐसे आठ आदेश विकल्प से होते हैं । उदा. - भाव | वेल्लइ । णिसरइ | कोड्डुमइ । सक्खुड्ड | खेड्डइ | मोट्टाइ | किलिकिञ्चइ । विकल्पपक्षमें - रमइ ॥ ९१ ॥ पडिसा परिसामौ शमेः ।। ९२ ।। 'शमु उपशमे' मेंसे शम् धातुको पडिसा और परिसाम ऐसे आदेश विकल्पसे होते हैं। उदा. -पडिसाइ । परिसामइ । ( विकल्पपक्ष में ) समइ ।। ९२ ।। लुभेः संभावः ।। ९३ ।। 'लुभ गाघ्न्यें'मेंसे लुभ् धातुको संभाव ऐसा आदेश विकल्प से होता है | उदा. संभाव । ( विकल्प पक्ष में ) -- लुम्भ ॥ ९३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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