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________________ २८६ -प्राकृत-व्याकरण ध्याप्रेराअड्डः ॥ १३ ॥ व्याप्रियति धातुको आअड्डु ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.आअहह । विकल्पपक्षम-वावरह ॥ १३ ॥ निस्सुनिहरनिलदाढवरहाढाः ।। १४ ।। निःसराति धातुको, निहर, निल, दाढ, वरहाढ ऐसे चार आदेश विकल्पसे होते हैं । उदा.-निहरइ । निलइ। दाढइ । वरहाढइ । (विकल्पपक्षमें)-नीसरह ॥ १४ ॥ जाग्रेजग्गः ॥ १५ ॥ 'जागृ निद्राक्षये' से जागृ धातुको जग्ग ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-जगइ । विकल्पपक्षमें-जागरइ ॥ १५ ॥ पट्टधोडल्लपिज्जाः पिवः ॥ १६ ॥ पिब ऐसा जिमको आदेश कहा है ऐसे 'पा पाने से पा धातुको पट्ट बोट्ट, हल्ल, पिज्ज ऐसे चार आदेश विकल्पसे होते हैं। उदा.-पट्टइ। घोहइ । डल्लह । पिज्जइ । विकल्पपक्षमें-पिवइ ॥ १६ ॥ धुवो धूञः ॥ १७ ॥ ___ 'धून कम्पने से धू धातुको धुव ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.धुवइ । (विकल्पपक्षमें)-धुणइ ॥ १७ ॥ हणः शृणोतेः॥ १८ ॥ __ 'श्रु श्रवणे' मेंस श्रु धातुको हण ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.हणइ । (विकल्पपक्षमें)-सुणइ ॥ १८ । म्लापव्वाऔ ॥ १९॥ 'म्लै गात्रविनामे' मेंसे म्लै धातुको वा और पव्वाअ ऐसे आदेश विकल्पसे प्राप्त होते हैं। उदा.-वाइ । वाअइ । (विकल्पपक्षमें)-मिलाइ ॥ १९॥ कुत्रः कुणः ॥२०॥ 'डुकृञ् करणे मेंसे कृ धातुको कुण ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-कुणइ । (विकल्पपक्षमें)-करइ ॥ २० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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