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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. १ १८७ काणेक्षिते णिआरः ॥ २९ ॥ . (इस सूत्रमें ३.१.२० से) कृत्रः पदकी अनुवृत्ति है । काणेक्षित विषयमें कृ धातुको णिआर ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-णिआरइ, काणेक्षितं करोति, ऐसा अर्थ ॥ २१ ॥ निष्टम्भे णिठ्ठहः ॥ २२॥ निष्टम्भ विषय हनेवाले कृ धातुको पिठुड ऐसा आदेश विकल्पस होता है। उदा.-णिठुहइ, निष्टम्भं करोति, ऐसा अर्थ ॥ २२ ॥ श्रमे वापम्फः ।। २३ ।। श्रम विषय होनेवाले कृ धातुको वापम्फ ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-बापम्फइ, श्रमं करोति (ऐसा अर्थ) ॥ २३ ॥ संदाणोऽवष्टम्भे ॥ २४ ॥ भवष्टम्भ विषय होनेवाले कृ धातुको संदाण एस. आदेश विकल्पसे. होता है। उदा.-संदाणइ, अवष्टम्भं करोति (ऐसा अर्थ) ॥ २४ ।। णिवोलो मन्युनौठमालिन्ये ।।२५॥ - क्रोध इस कारणसे जो ओष्टमालिन्य, उस विषयमें कृ धातुको णिन्योल ऐसा आदेश होता है। उदा.-णिन्योल इ, मन्युना ओष्ठं मलिनं करोति (ऐसा अर्थ) ॥ २५ ॥ गुललाटौ ॥ २६ ॥ चाटु विषय होनेवाले कृ धातुको गुलल ऐसा आदेश होता है । उदा.गुललइ, चाटु करोति, ऐसा अर्थ ॥ २६ ॥ पअल्लो लम्बनशैथिल्ययोः ॥ २७ ॥ लम्बन या शैथिल्य विषय होनेवले कृ धातुको पसल ऐसा आदेश होता है। उदा. पअल्लइ, लम्बयति शथिल्यं करोति वा (ऐ-1 ) ।। २७ ।। क्षुरे कम्मः ।। २८ ॥ क्षुर विषय होनेवाले कृ धातुको कम्म ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-कम्मइ, क्षुरं करोति (ऐसा अर्थ) ॥ २८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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