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________________ तृतीयोऽध्यायः-प्रथमः पादः॥ होहुवहवा भुवेस्तु ॥१॥ भू (भुवि) धातुको हो, हुव, हव ऐसे तीन आदेश विकल्पसे होते हैं । उदा.-होइ होन्ति हुवइ हुवन्ति । हवइ हवन्ति । विकल्पपक्षमें-भवइ । परिहीणविहवो भविउं पभवइ । परिभवह | सं भवइ । कचित् दूसराभी रूप होता है। उदा.-उभअहुत्तं ॥ १ ॥ पृथक्स्पष्टे णिव्वडः ॥ २॥ (इस सूत्रमें ३.१.१ से) भुवेः पदकी अनुवृत्ति है । पृथग्भूत और स्पष्ट अोंमें कर्तरि भू धातुको णिवह ऐसा आदेश होता है । उदा.-णिव्वटइ, पृथक् स्पष्टो वा भवति, ऐसा अर्थ ॥२॥ प्रभो हुप्पः ॥ ३ ॥ ___ (इस सूत्रमें ३.१.१ से) तु पदकी अनुवृत्ति है। प्रभु-कर्तृक भू धातुको हुन ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-अंगे वि न पहुप्पइ । विकल पक्षमेंपहवइ प्रभवति ॥ ३ ॥ हुक्ते ॥ ४ ॥ क्त प्रत्यय आगे होने पर, भू धातुको हु ऐमा आदेश होता है ! उदा.हुअं॥४॥ हुरचिति ॥ ५॥ चित् (जिसमें च इत् है) प्रत्ययोंको छोडकर अन्य प्रत्यय आगे होनेपर, (भू धातुको) हु ऐसा रित् आदेश विकल्पसे होता हैं। उदा.-हुन्ति । होन्ति । हुओ। चित् प्रत्ययों को छोडकर, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण वे प्रत्यय आगे होनेर हु आदेश नहीं होता)। उदा.-होइ ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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