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________________ सः समासः ॥ ८ ॥ समास 'स' संज्ञावाला होता है || ८ ॥ आदिः खुः ॥ ९ ॥ ( शब्द में ) आदि ( प्रथम ) रहनेवाला वर्ण खु-संज्ञक होता. है ॥ ९ ॥ त्रिविक्रम - प्राकृत व्याकरण गो गणपरः ॥ १० ॥ ( इस सूत्र में १.१.९ से ) आदिः पद ( अध्याहृत ) है ।' ( शब्दों के ) गणों में प्रधान होनेवाला जो शब्द आदि होता है, वह ग-संज्ञक होता है । उदा०-गुणादिः, इत्यादिमें ' गुणग ' इत्यादि शब्द ( उपयोग में लाये जाएंगे ) ॥ १० ॥ द्वितीयः ः फुः ॥ ११ ॥ शब्दका द्वितीय वर्ण फु-संज्ञक होता है ॥ ११ ॥ संयुक्तं स्तु ॥ १२ ॥ जो व्यंजनसे युक्त अर्थात् संयुक्त है, उसको स्तु ऐसी संज्ञा होती है ॥ १२ ॥ तु विकल्पे ॥ १३ ॥ विकल्प अथवा विभाषा दिखानेके लिए, तु' शब्दभी उपयोग में लाया गया है ॥ १३ ॥ प्रायो लिति न विकल्पः ॥ १४ ॥ कुछ कार्योंके लिए जो (वर्ण) सूत्रमें कहा जाता है, ( परंतु ) प्रयोग में मात्र (उपयोग में लाया हुआ ) दिखाई नहीं देता, वह इत् (वर्ण है) । उसीकोही अन्य व्याकरणोंमें अनुबंध यह संज्ञा है । (सूत्रमेंसे) लित् यानी जिसमें लकार इत् है, ऐसा । लित् का कार्य होते ( समय ) प्रायः विकल्प नहीं होता ॥ १४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only वा शब्द के समान www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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