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________________ १७६ वल आरोपेः ।। १०४ ॥ णिच्-प्रत्ययान्त आरोपि धातुको वल ऐसा आदेश विकल्पसे होता है | उदा.- वलइ | विकल्पपक्ष में- आरोवेइ ॥ १०४ ॥ त्रिविक्रम - प्राकृत-व्याकरण विरेचेरोलुड्डोल्लुडुपल्लत्थाः ॥ १०५ ॥ जिच्-प्रत्ययान्त विरेचयति धातुको ओल्लुङ, उल्लुड, पलत्य ऐसे तीन आदेश विकल्पसे होते हैं । उदा. - ओल्ड | उड्ड । पलत्थइ | विकल्प पक्ष में- विरेअइ ।। १०५ ।। कम्पेर्विच्छोलः ।। १०६ ॥ णिच्-प्रत्ययान्त कम्पयति धातुको विच्छोल ऐसा (आदेश) विकल्प से होता है | उदा. विच्छोलइ । विकल्पपक्ष में कम्पेइ ।। १०६ ।। रोमन्थेरोग्गालवग्गालौ ॥ १०७ ॥ 1 णिच्-प्रत्ययान्त रोमन्थि इस नामधातुको ओग्गाल और वग्गाल ऐसे आदेश विकल्पसे होते हैं । उदा. - ओग्गाला । बग्गालइ । विकल्पपक्ष में- रोमन्थे ।। १०७ ॥ प्रावेरोवालपव्वाल ॥ १०८ ॥ णि प्रत्ययान्त प्लावयति धातुको ओव्वाल, पव्वाल ऐसे आदेश विकल्पसे होते हैं | उदा.- ओव्वालइ । पव्वाल ॥ विकल्पपक्षमें - पावे ।। १०८/ मिश्रेालमेलवौ ।। १०९ ।। णिच् प्रत्ययान्त मिश्रयति धातुको मीसाल, मेलव ऐसे आदेश विकल्पसे होते हैं | उदा. - मीसालइ । मेलवइ । विकल्पपक्ष में-मीसेइ ।। १०९ ॥ छादेर्नू मनु मोव्वालडकपव्वालसंतुमाः ॥ ११० ॥ । णिच प्रत्ययान्त छादयति धातुको नूम, नुम, उव्वाल, डक्क, पव्वाल और संतुम ऐसे छः आदेश विकल्पसे होते हैं । उदा. - नूमइ ( न का ) ण होनेपर - णूमइ । उन्वालेइ । उक्केई । पव्वालेइ । विकल्प पक्षमें छाएइ ॥ ११० नुमइ । संतुमइ । ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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