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________________ १६८ त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण नेऊण नीत्वा । नेइ नयति । उड्डेइ उड्डयति । सोऊण श्रुत्वा । कचित् (ऐसा वर्णान्तर) नहीं होता। उदा.-नीओ । उड्डीणो ।। ६५ ॥ अर उः ।। ६६ ।। धातुके अन्त्य ऋ-वर्णको अर ऐसा आदेश होता है। उदा.-करइ । धरइ। वरइ । सरइ । भरइ । मरइ । तरइ । जरइ ।। ६६ ॥ अरि वृषाम् ।। ६७ ।। वृष् प्रकारके धातुओंके ऋ-वर्गको अरि ऐसा आदेश होता है। उदा.-वृष्-वरिसइ । मृष्-मरिसइ । कृष्-करिसइ । हृष्-हरिसइ । प्रयोगका अनुसरण करें यह दिखाने के लिर (वृषाम्) ऐसा बहुवचन (सूत्रामें) है ।।६७।। रुपगेऽचो दिः ॥ ६८ ॥ हर, इत्यादि धातुओं i, अव् का यानी स्वरक दीर्घ होता है। उदा.-रुर रूह। शुर-पूतह । दुर-दून। तुष्-जूपइ। पुष्-मूसह। शिष्सीसइ। इत्यादि । ६८ ॥ हलोऽक् ॥ ६९॥ हलन्त (=ज्यं जनान्त) धातुके आगे अक् ऐसा आगम होता है। (अक् मेंसे) ककार अन्त का विधि दिवाने के लिए है । उदा. हसइ । भभइ। रमइ । गच्छइ । भुज्जइ । उवसमइ । पावह। सिंचा। रंधइ। मुसइ। वहइ। सहइ। शस्, इत्यादि धातुओंके प्रयोग प्रायः नहीं होते ॥ ६९ ॥ त्वनतः ।। ७०॥ ___ (इस सूत्रमें २.४.६९ से) अक् पद (अध्याहृत) है। अकारान्त धातुको छोडकर (अन्य) धातुके आगे अक् का आगम विकल्पसे होता है। उदा.-पाअइ पाइ । ठाअइ ठाइ । वाअइ वाइ । धाअइ धाइ। जाअइ जाइ । झाअइ झाइ । भाइ भाइ, बिभेति भाति वा। जम्भाअइ जम्भाइ जम्भते। उव्वाअइ उब्दाइ उन्दाति। मिलाइ मिलाइ,म्लायते। विक्केअइ विक्केइ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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