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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. २, पा.४ मीले प्रादेहूँ तु ॥ ६१ ॥ प्र, इत्यादि उपसगोंके अगले मील (मीलि) धातुके अन्त्य वर्णके दो रूप विकल्पसे होते हैं। उदा.-पमिहइ । पमीलइ। निमिल्लइ निमीलइ । संमिश्लइ संमीलइ। उम्मिल्लइ उम्मीलइ। प्र, इत्यादि उपसर्गोके अगले, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण उपसर्ग पीछे न हो तो ऐसे दो रूप नहीं होते)। उदा.-मीलइ ॥ ६१ ॥ चलस्फुटे ।। ६२ ।। (इस सूत्रमें २.४.६१ से) द्वे पदकी अनुवृत्ति है। चलू और स्फुट धातुओंमें अन्त्य वर्णके दो रूप विकल्पसे होते हैं । उदा.-चलूइ चलइ । फुइ फुडइ ।। ६२ ।। शकगे ।। ६३ ॥ शक्, इत्यादि धातुओंमें अन्य वर्णके दो रूप होते हैं। यह सूत्र (२.४.६२ से) पृथक् कहा जानेसे, (यहाँका वर्णान्तर) नित्य हेता है। उदा.-शक्-सक्कइ । मृग-मन्गइ। लग लगइ । सिच (पिच)- सिचाइ । अट्-दृइ । लुट-सुदृ३ । त्रुट-दृइ । वुप्-वुप्पइ। जिम्-जिम्मइ । नश् (ण)-णस्सइ । इत्यादि ॥ ६३ ॥ उवर्णस्यावः ॥ ६४ ॥ __धातुके अन्त्य उ-वर्णको अब ऐसा आदेश होता है। 3८1.-हु (हु)-निन्हवइ । च्यु-चवइ । रु-रवइ । कु-कवइ । सु-सवइ । पसवइ ॥ ६४ ॥ योरेछ ।। ६५ ॥ (सूत्रमेंसे यु यानी) इ और उ=यु, उस युके-धातुमेंसे उस इ-वर्ण और उ-वर्ण इनके-एङ् यानी ए और ओ यथाक्रम होते हैं। (यानी) इ-वर्णका एकार और उ-वर्णका ओकार (होते हैं)। उदा.-जेउण जित्वा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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