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त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण
एच्च क्त्वातुंतव्यभविष्यति ।। १९।।
क्वा, तुम् और तव्य (ये प्रत्यय) तथा भविष्यकालका ऐसा कहा हुआ प्रत्यय, ये आगे होनेपर, (धातुके अन्त्य) अ का ए, और (सूत्रमेंसे) चकारके कारण इ होते है। उदा.-क्वा-हसेऊण हसिऊण । तुम्-हसेउं। तव्य-हसेअव्वं हसिअव्वं । भविष्यकाल का प्रत्यय-हसे हिइ हसिहिइ । (धातुमेंसे अन्त्य) अकेही (इ अथवा ए होते है; अन्य अन्त्य स्वरोंके नहीं) उदा.-जाऊण | काऊण ।। १२॥ वा लट्लोट्छतृषु ॥ २० ॥
(इस सूत्रों २.४.१९ से) एत् पदकी अनुवृत्ति है। लट् यानी वर्तमानकाल; लोट् यानी पंचमी (=आज्ञार्थ); इन दोनोंके प्रत्यय, तथा शतृ प्रत्यय आगे होनेपर, (धातुमेंसे अन्त्य) अ का ए विकल्पसे होता है।उदा.लट्-हसेइ हसइ। हसेम हसिम। लोट-हसेउ हसउ । सुणेउ सुणउ । शत्हसेन्तो। कचित् (धातुमेंसे अन्य अ का) ए नहीं होता। उदा.-जअइ । कचित् (धातुके अन्त्य अका) आ होता है। उदा.-सुणाइ ।। २० ।। ज्जा ज्जे ॥ २१ ।। - जा और ज्ज प्रत्यय आगे होनेपर, (धातमेंसे अन्त्य) अ का ए होता है। उदा.-हसेज्जा हसेज्ज । (धातुमेंसे अन्त्य) अकाही (ए होता है, अन्य अन्य स्वरोंका नहीं)। उदा. होज्जा होज्ज ।। २१ ।। भूतार्थस्य सी ही ही।। ६२।।।
भूतार्थमें यानी भूतकालके अर्थ कहे हुए जो अनद्यतन, इत्यादि (भूतकालके) प्रत्यय (यानी सूत्रमेंसे भूतार्थ यानी लुङ्, लङ् और लिट् इन तीन भूतकालों के प्रत्यय), उनके स्थानपर सी, हीअ और ही ऐसे तीन
आदेश होते है। अगले (२.४.२३) सूत्र में 'हल ईअ' ऐसा विधान -होनेसे, यह विधि (नियम) स्वरान्त धातुकोही लगता है। उदा.-कासी काहीअ काही, अकार्षीत् अकरोत् चकार वा। इसीप्रकार-ठासी ठाही ठाही ॥२२॥
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