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- हिन्दी अनुवाद-अ. २, पा. ४ भाध अ का आ होता है, ऐसा कोई कहते हैं। उदा..कारवेइ । हासाविमो जणो सामलंगीए ।। १५।। तु मौ ॥ १६ ।।
(इस सूत्रम २.४.१५ से) अतः और आत् इन पदोंकी अनुवृत्ति है। अकारान्त धातुके आगे, मि यानी वर्तमानकालीन उत्तमपुरुषके एकवचनका आदेश आगे होनेपर, (अन्त्य अका) आ विकल्पसे होता है। उदा.-हसामि हसमि। जाणामि जाण मि। लिहामि लिह मि | अकारान्त धातुके आगेही ऐसा होता है (अन्य स्वरान्त धारके गे नहीं)। उदा.होमि ।।१६।। मोममुविच्च ।। १७ ।।
(इस सूत्रमें २.४.१६ से) तु पदकी अनुवृत्ति है। अकारान्त धातुके आगे, मो, मु और म ऐसे ये (प्रत्यय) आगे होनेपर, (अन्य) अ का इ, और (सूत्रमेंसे) चकारके कारण आ विकल्पसे होते हैं। उदा.-णिमो भणामो। भणिभ भणाम । भणिभु भणामु। विकल्पपक्षमें-भणमो भणम मणमु । 'वा लड्लोट्छतृषु' (२.४.२०) सूत्रानुसार, विकल्पसे (अ का) ए होनेपर-मणेमो भणेम भणेमु। अकारान्त धातुके आगेही ऐसा होता है (अन्य स्वरान्त धातुके आगे नहीं)। उदा.- होमो । १७ ।। ते ।। १८॥
(इस सूत्रमें २.४.१७ से) इत् पदकी अनुवत्ति है। क्त.प्रत्यय आगे होनेपर, (धातुके अन्त्य) अ का इ होता है। उदा.-हसि। पढि। नमि। हासि। पाढिों। नामि। अ, ग, इत्यादि रूप मात्र उनके सिद्धावस्थाकी अपेक्षासे होते हैं। (धातुमसे अन्त्य) अकाही (इ होता है; इतर अन्त्य स्वरोंका नहीं)। उदा. टूअं । हूअं ॥ १८॥
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