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________________ १५४ कम-प्राकृत-व्याकरण शुष्यादेरविर्वा ।। १२ ।। (इस सूत्रमें २.४.११ से) णिच् पदकी अनुवृत्ति है। शुष् , इत्यादिके आगे आनेवाले णिच् को अवि ऐसा (आदेश) विकल्पसे होता है। उदा.-शोषितं सोसाविअ सोसि। तोषितं तोसावि तोसि ॥१२॥ भ्रमेराडः ।। १३ ॥ भ्रम् धातुके आगे णिच् (प्रत्यय) आड ऐसा विकल्पसे होता है। उदा.-भमाडइ। विकलापक्षमें-भामइ भामेइ भमात्रइ भमावेइ ॥ १३॥ लुगाविल् भावकर्मक्ते ॥ १४ ॥ __ भाव (और) कर्म के लिए कहा हुआ प्रत्यय तथा क्त-प्रत्यय आगे होनेपर, णिच् प्रत्ययको लुक् और आवि ऐसे आदेश होते हैं। (सूत्रमेंसे लुगा विल में) ल् इत् होनेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता। उदा.-भाव और कर्म (प्रत्यय आगे होनेपर)-कारिअइ कागविअइ कारिजइ काराविज्जइ । हासिअइ हासाविअइ हासिज्जइ हासाविज्जइ। क्त प्रत्यय आगे होनेपरकारि काराविरं। हसि हासाविअं। खामिअं खामावि ॥ १४ ॥ अदेल्लुक्यात्खोरतः ॥ १५ ॥ णिच् प्रत्ययके स्थानपर आनेवाले ऐसे कहे हुए जो अत्, एत् और लुक्, वे आगे होनेपर, (धातुमेंसे) खु यानी आद्य अत् का यानी अकारका थात् (आकार) होता है। उदा.-अत्-पाडइ । मारइ । एत्-कारेइ । मारेइ । खामेइ। लुक-कारिअइ कारिज्जइ। खामिअइ खामिज्जइ । अत् , एत् और लुक आगे होनेपर, ऐसा क्यों कहा है १ (कारण अन्य आदेश आगे होनेपर)-कारावि कारि। काराविअइ काराविज्जइ। खु (आद्य अका, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण इसीप्रकार) संगामेइ, यहाँ व्यवहित (अ का मा) न हो। कारिअ, यहाँ अन्य (अ का आ) न हो। अत् का, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण-) आसेइ । आवे और आवि प्रत्यय आगे होनेपरभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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