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________________ हिन्दी अनुवाद - अ. २, पा. २ १२५. बाउणो । पुल्लिंग शब्दोंमें, ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण अन्यलिंग शब्दों में ऐसा नहीं होता) | उदा. - बुद्धीइ | दही । इ और उ इनके आगेही (ऐसे आदेश होते हैं; अकारान्त शब्द के आगे नहीं ) | उदा.- वच्छा ।। २४ ॥ डवो उतः ।। २५ ।। (इस सूत्र में २.२.२४ से) पुंसः और जसः पद (अध्याहृत ) हैं । पुल्लिंग - शब्द मेंसे ( अन्त्य) उ के आगे आनेवाले जस् (प्रत्यय) को डित् अवो ऐसा (आदेश) विकल्पसे होता है । उदा.- वाअवो। विकल्पपक्षमेंवाअओ वाऊ वाउणो । ( अन्त्य) उ के आगे, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण अकारान्त पुल्लिंगशब्दों में ऐसा नहीं होता) । उदा. बच्छा । पुल्लिंग - शब्द में, ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण उकारान्त स्त्रीलिंगशब्द में ऐसा नहीं होता ) | उदा. - घेउ । बहूउ ।। २५ ।। णो शसश्च ।। २६ ।। (यह सूत्र ) पृथक् कहा जानेसे, इत् और उत् इन दोनोंका ग्रहण यहाँ होता है । (शब्दों के अन्त्य ) इत् और उत् इनके आगे आनेवाले जस् (प्रत्यय) को और शस् (प्रत्यय) को णो ऐसा आदेश होता है । उदा.गिरिणो तरुणो चिट्ठन्ति पेच्छवा । विकल्पपक्ष में- गिरी । तरू ।। (इकारान्त और उकारान्त शब्द) पुल्लिंग में होनेपरही ऐसा आदेश होता है; (अन्य लिंग में होनेवर, ऐसा आदेश नहीं होता) | उदा. - बुद्धी । घेणू | दहीहं । महूई ॥ २६ ॥ " नृनपि ङसिङसोः || २७ ॥ पुल्लिंग और नपुंसकलिंग ( शब्दों में ( अन्त्य स्थानपर) होनेवाले इ और उ इनके आगे आनेवाले ङसि और ङस् (प्रत्ययों ) को णो ऐसा आदेश विकल्पसे होता है | उदा. - गिरिणो तरुणो आगओ विआरो वा । विकल्पपक्षमें - ङसि (आगे होनेपर ) - गिरीओ । तरूओ । दहीओ । महूओ । डस् ( आगे होनेपर ) – गिरिस्त | तरुम्स । दहिस्स । महुस्स । नृनफि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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