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________________ १२४ त्रिविक्रम -‍ - प्राकृत व्याकरण भिस्म्यसुपि ॥ २१ ॥ भिस्, भ्यस् और सुप् ये (प्रत्यय) आगे होनेपर, (शब्दों के अन्त्य ) अ का ए होता है । यह सूत्र ( २.२.२० से ) पृथक् कहा जानेसे, (यहाँका ए) नित्य होता है । उदा - भिस् ( आगे होनेपर ) - वच्छेहिं । म्यसु (आगे होनेपर ) - बच्छेहिंतो वच्छेसुतो । वच्छेहि । तो, दो, दु (प्रत्यय) आगे होनेपर दी ही होता है । सुप् ( आगे होनेपर ) - वच्छेसु ।। २१ ॥ " इदुतोर्दिः ।। २२ ।। भिस्, म्यस् और सुप् (ये प्रत्यय) आगे होनेपर, ( शब्दों के अन्त्य ) इ और उ इनका दिः यानी दीर्घ होता है । उदा. - भिस् ( आगे होनेपर ) - गिरीहिं गिरीहि । इसी तरह - बुद्धीहिं । तरूहिं | घेहिं । महूहिं । भ्यस् ( आगे होनेपर ) - गिरीहिंतो । गिरीसुंतो । गिरीओ गिरीउ । इसी तरहबुद्धीओ । गामणीओ । तरुओ । महूओ आअअं । सुप् ( आगे होनेपर ) - गिरीसु । दहीसु । गामणीसु । तरूयुं ठिअ । कचित् (ऐसा दीर्घ) नहीं होता | उदा. - दिअभूमिसु दाणजल दिआई, द्विजभूमिषु दानजलार्दितानि । इ और उ इनका, ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण अकार के बारेमें ऐसा नहीं होता ।) उदा.- वच्छेहि । वच्छेसुंतो । वच्छेषु ।। २२ ।। Jain Education International चतुरो वा ।। २३ । उकारान्त चतुर् शब्दके आगे भिस्, भ्यस्, सुप् (प्रत्यय) होनेपर, दीर्घ विकल्पसे होता है । उदा. - चउहि चउहि । चउहिंतो चऊहिंतो । चउसु चऊसु ॥ २३ ॥ पुसो जसो डउडओ ॥ २४ ॥ (अब) इदुत: (देखिए २. २. २२) पदका पंचग्यन्त परिणाम होता है । पुलिंग शब्दों में से (अन्त्य) इ और उ इनके आगे आनेवाले जस् (प्रत्यय) को डित् अउ और अओ ऐसे ये (आदेश) विकल्पसे होते हैं । उदा.अग्गउ अग्गओ । वाअउ वाअओ । विवल्पपक्ष में- अग्गी अग्गिणो । वाऊ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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