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________________ हिन्दी अनुवाद-म. २, पा.२ १२३ ङ. ।। १६ ॥ (शब्दोंके अन्त्य) अकारके आगे सप्तमी एकवचनका डित् ए विकल्पसे होता है। उदा.-वच्छे । धणे । विकल्पपक्षमें-वच्छम्मि । धणम्मि उसिसो हि ॥ १७ ॥ (शब्दोंके अन्त्य) अकारके आगे ङसिस्को यानी पंचमीको हि ऐसा (आदेश) विकल्पसे होता है। उदा.-वच्छाहि। धगाहि । भ्यस प्रत्ययके पूर्व (अन्त्य अकारका) ए होनेपर-वच्छेहि । धणेहि । विकल्पपक्षमें-हिंतो, त्तो, दो, दु, ये (आदेश होतेही हैं)।। १७ ।। टो डेणल् ॥ १८ ॥ (शब्दोंके अन्त्य) अकारके आगे टा-(तृतीया एक) वचनको डित् एण ऐसा आदेश होता है। (सूत्रके डेणल्में) ल् इत् होनेसे, (यह आदेश) नित्य होता है। उदा.-वच्छेण । धणेण। (क्वासुपोस्तु सुणात् । १.१. ४३ सूत्रानुसार) अनुस्वार आनेपर-वच्छेणं । धणेणं । (ऐसे रूप होंगे) ।। १८ ।। दिर्वा भ्यसि ।। १९॥ _ (अबतक) अतः ऐसा जो पंचम्यन्त पद था (देखिए २.२.१२), वह (अब) षष्ठयन्त विभक्तिमें परिणत होता है। भ्यस् का आदेश (आगे) होनेपर, अत् का दि यानी दीर्घ विकल्पसे होता है। उदा.-वच्छाहितो वच्छेहितो। वन्छ।सुतो वच्छेसुतो। वच्छा हि वच्छेहि। त्तो, दो, दु (ये आदेश आगे होनेपर), दीर्घ होताही है (सूत्र २.२.८ देखिए) ।। १९ ।। शस्येत् ॥ २० ॥ . (शब्दोंके अन्त्य) अकारका शस् प्रत्यय आगे होनेपर, ए विकल्पसे होता है। उदा.-वच्छे वच्छा पेच्छ ।। २० ॥ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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