________________ 110 त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण रुच प्रत्यय आय।। (132) ओहल्ली अपसृतिः। (अपमृति शब्दमें) सृति को हल्ली (आदेश) हो गया। (133) मम्मको गर्व / मर्मन् शब्दके आगे कहे हुए अर्थमें क प्रत्यय आया। (134) मडप्परो मधुपर / यहाँ उ का अ और धु का ड हो गया / इत्यादि। कृष्ट, उपसर्गरहित धृष्ट, वाक्य, विद्वम् , वाचस्पति, विष्टरश्रयस्, प्रचेतस्, प्रोक्त, इत्यादि शब्द; और किए, इत्यादि प्रत्ययोंसे अन्त होनेवाले अग्निचित् , सोमसुत्, इत्यादि शब्द; सुग्लौ, सुम्ला, इत्यादि शब्द; जिनका उपयोग पूर्व विद्वानोंने नहीं किया है, उसके प्रतीति (अर्थ) घातक ऐसे प्रयोग न करें, उनका अर्थ अन्य (समानार्थक) शब्दोंके द्वारा व्यक्त करें। उदा.-कृष्टः कुशलः / वाचस्पतिः गुरुः। विष्टरश्रवस हरिः। इत्यादि / उपसर्गयुक्त घृष्ट शब्दका प्रयोग चलता है। उदा.मंदरअड परिघटुं, मन्दरतटपरिघृष्टम् / तं दिअसणिघट्ठाणं, इत्यादि // 30 // अव्ययम् / / 31 // ___ अव्यय पदका अधिकार इस पादकी परिसमाप्तितक है। यहाँसे आगे जो कहे जाएंगे वे अव्ययसंज्ञक शब्द है, ऐसा जानना // 31 // आम अभ्युपगमे // 32 / / .. आम यह अव्यय स्वीकार (अर्थ) में प्रयुक्त करें। उदा.-आम बहुला वणाली। कोई कहते हैं कि आम अव्यय संस्कृतमेंभी है / / 32 // तं वाक्योपन्यासे / / 33 / / तं यह अव्यय वाक्यारंभ करते समय प्रयुक्त करें। उदा.-तं तिअसबंदिमोक्खं // 33 // णइ चेअ चिअ च एवार्थे // 34 // णइ, चेअ, चिअ, च्च ये (अव्ययरूप) शब्द अवधारण अर्थमें प्रयुक्त करें / उदा.-गइओ णइ / गदित एव / / जं चेअ मुउलणं लोअणाणं अणुबंध तं चिअ कामिणीणं / यदेव मुकुलनं लोचनानामनुबन्धं तदेव कामिनीनाम् // (चिअ शब्द) देवादिपाठमें होनेसे, उसमें द्वित्व होता है। उदा.-ते च्चिअ धण्णा ते चअ सुउरिसा / त एव धन्यास्त एव सुपुरुषाः / / सो च्च वअरूवेण / स एव बयोरूपेण / / सो च सीले / स एव शीले // 34 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org