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________________ ९२ त्रिविक्रम- प्राकृत व्याकरण लनोरालाने ।। ११२ ।। ( इस सूत्र में १.४.१११ से) व्यत्यय पदकी अनुवृत्ति है । आलानमें लकार और नकार इनका व्यत्यय होता है । उदा:-आणालो ।। ११२ ।। वाराणसीकरेण्वां रणोः ॥ ११३ ॥ ( वाराणसी और करेणु) इन शब्दों में रेफ और णकार इनका व्यत्यय होता है | उदा. वाणारसी । कणेरू । सूत्रमें करेण्यां (स्त्रीलिंगमेंसे करेणुमें), ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण करेण्यां में स्त्रीलिंगका निर्देश है; इसलिए (यह शब्द) इतरत्र यानी अन्य लिंग में होनेपर, व्यत्यय नहीं होता) | उदा.एसो करेणू ॥ ११३ ॥ ललाटे डलोः ॥ ११४ ॥ ललाट शब्दमें ट का ड होनेपर, ड आर ल इनका व्यत्यय होता है | उदा. - णिडालं णडालं । - 'लो ललाटे च' (१.३.८१) सूत्रानुसार, (लला में) आद्य ल का ण ही होता है ।। ११४ ॥ (योः ।। ११५ ।। कृ शब्द में द और ह इनका व्यत्यय होता है । उदा - द्रहो दहो । उद ।। १।। चलयोरचलपुरे ।। ११६ ॥ अचलपुर में च और ल इनका व्यत्यय होता है | उदा. - अलअउरं ।। ११६ ।। ह्येोर्वा ॥ ११७ ॥ ह्य इस शब्दमें हकार और यकार इनका व्यत्यय विकल्पसे होता है । उदा.- गुह्यम् गुहं गुज्झं । सह्यम् सरहं सज्झं ।। ११७ ।। लघुके लहोः ॥ ११८ ॥ लघुक शब्दमें घ का ह होनेपर, ह और ल इनका व्यत्यय विकल्पसे होता है | उदा. - हलुओ लहुओ । घ का व्यत्यय यदि किया जाएगा, तो घ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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