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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा.४ संयुक्त व्यंजनमें से अन्त्य व्यंजनके पूर्व उ आता है। उदा.-तन्वी तणुवी। लध्वी लहुवी। गुर्वी गुरुवी । पृथ्वी पुहुई । मृद्वी मउई । बह्वी बहुई । पट्वी पटुई । इत्यादि । १०६ ॥ स्रुघ्ने रात् ॥ १०७ ।। ___ जुन शब्दमें संयुक्त व्यंजनमेंसे र् के पूर्व उ आता है। उदा.-सुरुग्धं (नामका) नगर ।। १०७ ॥ एकाचि श्वःस्वे ।। १०८ ।। एक स्वर होनेवाले श्वः और स्व इनमें, संयुक्त व्यंजनमेंसे अन्त्य व्यंजनके पूर्व उ आता है। उदा.-श्वः कृतम् सुओ क । स्वे जनाः सुवे जणा। एक स्वर होनेवाले, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण वैसा न होनेपर, उ नहीं आता।) उदा.-स्वजनः सअणो ।। १०८ ॥ वा छद्मपद्ममूर्खद्वारे ।। १०९ ॥ . (छद्म, पद्म, मूर्ख, द्वार) इनमें स्तु यानी संयुक्त व्यंजनमें यमाने . व्यंजनके पूर्व उ विकल्पसे आता है। उदा.-छउमं छम्मं । पहा (ोम्म । मुरुक्खो मुक्खो। दुवारं, विकल्पपक्षमें-दारं वारं देरं वेरं ॥ १० (सा ईल ज्यायाम् ॥ ११० ॥ ज्या शब्दमें अन्त्य व्यंजनके पूर्व नित्य ई (वर्ण) आता है। उदा.जीआ ।। ११०॥ हश्च महाराष्ट्रे होर्व्यत्ययः ॥ १११ ॥ (अब) स्तोः यह अधिकार समाप्त हुआ है। महाराष्ट्र शब्दमें होः यानी हकार और रेफ इनका व्यत्यय यानी स्थिति-परिवृत्ति होती है। यानी एकके स्थानपर दूसरा आता है, ऐसा अर्थ होता है। और ह यानी दीर्घका हस्व हो जाता है। उदा.-मरहट्ठो ॥ १११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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