SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... द्वितीय अध्याय........{51) अयोगी केवली-इन चार अवस्थाओं का नामोल्लेख हुआ है, किन्तु उनका सम्बन्ध गुणस्थानों से नहीं है । २. अनुयोगद्वारसूत्र और गुणस्थान :___ अनुयोगद्वारसूत्र को श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में चूलिकासूत्र के रूप में तथा स्थानकवासी और तेरापंथी परम्परा में मूलसूत्र के रूप में स्वीकार किया गया है। इस ग्रन्थ का मूल प्रयोजन आगमों में प्रतिपादित विषयों को समझने के लिए, एक विधि या पद्धति प्रस्तुत करना है। जैनदर्शन में किसी भी कथन के सम्यक् तात्पर्य को समझने के लिए नय और निक्षेप की पद्धति आवश्यक मानी गई है, किन्तु नय और निक्षेप के अतिरिक्त, विषयों के वर्गीकरण की दृष्टि से और उनकी स्पष्ट व्याख्या की दृष्टि से, अनुयोगद्वारसूत्र की पद्धति का भी विकास हुआ। अनुयोगद्वारसूत्र की पद्धति यह बताती है कि किस विषय को किस-किस अपेक्षा से, किस-किस रूप में, व्याख्यायित किया जा सकता है। तत्त्वार्थसूत्र, जीवसमास और षट्खण्डागम में सत्संख्यादि आठ अनुयोगद्वारों की चर्चा है, किन्तु इसे पूर्व आगम परम्परा में द्रव्यानुयोग, चरणकरणानुयोग, गणितानुयोग और धर्मकथानुयोग-इन आधार मानकर आगमों की विषयवस्तु का वर्गीकरण किया गया है; किन्तु प्रस्तुत अनुयोगद्वारसूत्र में मुख्यरूप से जैन पारिभाषिक शब्दों को किस-किस दृष्टि से व्याख्यायित एवं स्पष्ट किया जा सकता है, इसकी चर्चा है। वस्तुतः यह ग्रन्थ जैन आगम की विषयवस्तु और उसके पारिभाषिक शब्दों के अर्थों को समझने के लिए एक पूंजी के रूप में है। यह आगमिक विषयों के अर्थ का उद्घाटन करनेवाला सूत्र है। इसके माध्यम से ही हम आगमिक विषयों को सम्यक् प्रकार से समझ सकते हैं। इसमें विभिन्न द्वारों के माध्यम से पारिभाषिक शब्दों के अर्थों को स्पष्ट करने की विधि बताई गई है। परम्परागत दृष्टि से इस ग्रन्थ के रचयिता आचार्य आर्यरक्षित माने जाते हैं। अनुयोगद्वारसूत्र का उल्लेख नंदीसूत्र में आगमों की जो सूची दी गई है, उसमें है। इस अपेक्षा से यह नंदीसूत्र के पूर्व की रचना है। इसका काल प्रथम-द्वितीय शताब्दी के लगभग माना जाता है। प्रस्तुत विवेचना में हमारा मुख्य प्रयोजन तो आगम ग्रंथों में गुणस्थान सिद्धान्त की अवधारणा की खोज करना है। अतः इस सम्बन्ध में अधिक विस्तार में न जाकर हम आगे यह देखने का प्रयत्न करेंगे कि अनुयोगद्वारसूत्र में क्या गुणस्थान सम्बन्धी कोई विचारणा या संकेत उपलब्ध है? . ____नंदीसूत्र के पश्चात् चूलिकासूत्र में अनुयोगद्वार का क्रम है। अनुयोगद्वारसूत्र में षष्ट नाम पद में सर्वप्रथम औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सन्निपातिक-ऐसे छः भावों की चर्चा है। इसी चर्चा में औदयिक भावों की चर्चा करते हुए मिथ्यादृष्टि, अविरत, सयोगी शब्द आए हैं, किन्तु यहाँ उनका सम्बन्ध औदयिक भाव से ही है, गुणस्थानों से नहीं। इसी क्रम में औपशमिकभाव की चर्चा करते हुए उपशान्तदर्शनमोह, उपशान्तचारित्रमोह, उपशान्त कषाय छद्मस्थवीतराग आदि पदों का उल्लेख हुआ है। इसीप्रकार क्षीणभाव की चर्चा करते हुए क्षीणदर्शनमोह, क्षीणचारित्रमोह पदों का उल्लेख भी मिलता है, किन्तु इस समस्त चर्चा के मूल में क्षायिक और औपशमिक भावों की विभिन्न अवस्थाओं का ही चित्रण है, इनका सम्बन्ध गुणस्थानों से नहीं है। (२७१ से २६७) इस प्रकार हम देखते है कि नंदीसूत्र और अनुयोगद्वारसूत्र-दोनों में ही गुणस्थान सम्बन्धी विचारणा का अभाव है। | छेदसूत्र आगम विभाग | १. दशाश्रुतस्कंध और गुणस्थान : श्वेताम्बर परम्परा में आगमों के एक विभाग के रूप में छेदसूत्रों का भी एक वर्ग है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा इस वर्ग के अन्तर्गत दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प, व्यवहार, निशीथ, महानिशीथ, जीतकल्प-इन छः ग्रन्थों का समावेश करती है, जबकि १०८ वही, अनुयोगद्वार १०६ वही, दसाओ. Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy