SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा........ द्वितीय अध्याय.....{50} इन तीन प्रकृतियों की चर्चा है। यह चर्चा भी मात्र मोहनीय कर्म की इन तीन प्रकृतियों का ही उल्लेख करती है। उत्तराध्ययनसूत्र के ३४ वें लेश्या नामक अध्ययन में मिथ्यादृष्टि, अविरत, उपशान्त आदि शब्द मिलते हैं, किन्तु ये यहाँ अपने सामान्य अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं, गुणस्थानों के सम्बन्ध में नहीं। उत्तराध्ययनसूत्र का ३६ वाँ जीवाजीवविभक्ति नामक अध्ययन जीव और अजीव की विभक्ति के रूप में है और २६८ गाथाओं का सबसे विस्तृत अध्ययन है, किन्तु इस अध्ययन में कहीं भी गुणस्थान सम्बन्धी कोई निर्देश नहीं है। इसप्रकार हम देखते हैं कि उत्तराध्ययनसूत्र जो मूलसूत्रों में सबसे अधिक प्रतिष्ठित और प्रामाणिक माना जाता है, उसमें गुणस्थानों से मिलते-जुलते कुछ नामों को छोड़कर गुणस्थान सम्बन्धी कोई सुव्यवस्थित विवरण नहीं है । यही कारण है कि विद्वान इसी आधार पर यह निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि उत्तराध्ययनसूत्र जैसे प्राचीन आगमों के काल तक गुणस्थान की अवधारणा विकसित नहीं हुई थी। चूलिकासूत्र आगम विभाग १ नंदीसूत्र और गुणस्थान : अर्द्धमागधी आगम साहित्य में नंदीसूत्र को चूलिकासूत्र के अन्तर्गत माना जाता है। यह ग्रन्थ मूलतः मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केवलज्ञान- इन पंच ज्ञानों के बारे में विस्तार से चर्चा करता है। पंच ज्ञान की अवधारणा जैनदर्शन की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। नंदीसूत्र का अध्ययन करने से न केवल इन पंच ज्ञानों के स्वरूप का बोध होता है, अपितु इन ज्ञानों की व्याख्या सम्बन्धी ऐतिहासिक विकासक्रम का भी बोध होता है। वैसे तो यह ग्रन्थ पाँचों ही ज्ञानों के लक्षण, स्वरूप, प्रकार आदि की चर्चा करता है, किन्तु इसमें सर्वाधिक विस्तार से हमें श्रुतज्ञान की चर्चा मिलती है। श्रुतज्ञान के अन्तर्गत इसमें आगम साहित्य का विस्तृत परिचय भी दिया गया है। आगमों के वर्गीकरण की इसकी पद्धति वर्तमान में उपलब्ध पद्धति से भिन्न है। इसमें आगम साहित्य को पहले अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य - ऐसे दो भेदों में बांटा गया है। फिर अंगबाह्य के दो भेद किए गए है- आवश्यक और आवश्यक व्यतिरेक । पुनः आवश्यक व्यतिरेक के भी दो विभाग किए गए है- कालिक और उत्कालिक । इसप्रकार इसकी आगमों के वर्गीकरण की शैली वर्तमान शैली से भिन्न है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें आगम ग्रन्थों की जो सूची उपलब्ध होती है, उसमें से अधिकांश ग्रन्थ वर्तमान में अनुपलब्ध हैं। इसप्रकार पंच ज्ञान सम्बन्धी विवेचन और विशेष रूप से आगमों के विषयवस्तु की जानकारी की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें अंग-आगमों की विषयवस्तु आदि का विवरण उपलब्ध हो जाता है। नंदीसूत्र में यदि गुणस्थान सिद्धान्त से सम्बन्धित किन्हीं संदर्भों की विचारणा की संभावना है तो मात्र पंचज्ञानों की चर्चा प्रसंग में ही है। पंचज्ञान की चर्चा के प्रसंग में नंदीसूत्र में केवलज्ञान के दो भेद किए गए हैं। भवस्थ केवलज्ञान और सिद्ध केवलज्ञान । पुनः भवस्थ केवलज्ञान के भी सयोगी भवस्थ केवलज्ञान और अयोगी भवस्थ केवलज्ञान । पुनः प्रथम समय, अप्रथम समय, चरम समय और अचरम समय आदि को लेकर अनेक भेद किए गए हैं, किन्तु प्रस्तुत प्रसंग में हमारा सम्बन्ध मात्र सयोगी केवली और अयोगी केवली इन दो अवस्थाओं से ही है। निश्चय ही गुणस्थान सिद्धान्त में इन दोनों अवस्थाओं को तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान के रूप में स्वीकार किया गया है, किन्तु प्रस्तुत प्रसंग में इन दोनों अवस्थाओं का उल्लेख ज्ञान सम्बन्धित चर्चा के प्रसंग में हुआ है | अतः इन्हें यहाँ गुणस्थान सिद्धान्त से सम्बन्धित करना समुचित नहीं लगता है। इसीप्रकार मतिज्ञान और श्रुतज्ञान की चर्चा भी यह कहा गया है कि सम्यग्दृष्टि का मतिज्ञान, ज्ञान है और मिथ्यादृष्टि का मतिज्ञान, अज्ञान है। इसीप्रकार सम्यग्दृष्टि का श्रुतज्ञान, ज्ञान है और मिथ्यादृष्टि का श्रुतज्ञान, श्रुतअज्ञान है। यहाँ भी सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि पद की चर्चा है, किन्तु यह चर्चा ज्ञान की अपेक्षा से है, गुणस्थानों की अपेक्षा से नहीं । इस प्रकार नंदीसूत्र में मिध्यादृष्टि, सम्यग्दृष्टि, सयोगी केवली और १०७ वही, नन्दीसुत्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy