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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा....
परिशिष्ठ-२........{496}
शतक नामक पंचम कर्मग्रन्थ
लेखक :- देवेन्द्र सूरिजी विशेषार्थ :- पं. चंदुलाल ज्ञानचंद प्रकाशन :- श्री मुक्तिकमल जैन मोहन ज्ञान मंदिर, रावपुरा कोड़ीपोल महाजन गली, बड़ोदरा मुद्रक :
कहान मुद्रणालय, जैन विद्यार्थी गृह, सोनगढ़-३६४२५०
वीर.सं. २५२० वि.स. २०५४ चौथी आवृत्ति कषायपाहुडसूत्र
लेखक:- गणधराचार्य प्रणीत हिन्दी अनुवादक, सम्पादक :- पं. हीरालाल जैन शास्त्री प्रकाशन :- वीरशासन संघ, कलकत्ता मुद्रक :
ओमप्रकाश कपूर, जनाना मण्डल यंत्रालय, बनारस-४६१५११
वि.स. २०१२ द्वि. भाद्रपद, श्री वि.नि.सं. २४६१ सन् ६-१६५५ कार्तिकेयानुप्रेक्षा
लेखक:- कार्तिकेय हिन्दी अनुवादक :- पं. महेन्द्र कुमार पाटनी प्रकाशक:- श्री ब्र. दुलीचंद जैन ग्रन्थमाला, मदनगंज किशनगढ़ (राजस्थान)
द्वारा श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ़ (सौराष्ट्र) मुद्रक :
नेमिचंद बाकलीवाल, कमल प्रिन्टर्स, मदनगंज (राजस्थान)
प्रथमावृत्ति : वीर.सं. २४७७, द्वितीयावृत्ति : वीर.नि.सं. २५०० कर्मप्रकृति
लेखक : शिवशर्मसूरि गुजराती अनुवादक : मुनि वल्लभविजय प्रकाशक : माणेकलाल चुनीलाल नागजी भूधरजी नी पोल, अहमदाबाद
ई.सन् १६३८ (प्रस्तुत विवेचन में गाथा संख्या इस संस्करण के आधार पर दी गई है।) कर्मविज्ञान भाग -5 लेखक :
आचार्य देवेन्द्रमुनि प्रकाशक:- श्री तारकगुरु जैन ग्रन्थालय उदयपुर, शास्त्री सर्कल (राजस्थान) वि.स. २०५० मुद्रण :
श्री संजय सुराना द्वारा कामधेनु प्रिन्टर्स एण्ड पब्लिशर्स, ए-७, अवागढ़ हाऊस, एमजी रोड, आगरा, मोहन मुद्रणालर कल्पसूत्र
वाचना प्रमुख :- आचार्य तुलसी संपादक :- युवाचार्य महाप्रज्ञ प्रकाशन :- जैन विश्व भारती लाडनूं (राज.) मुद्रक :
श्री वर्धमान प्रेस, नवीन शाहदरा, दिल्ली - ११०००३२ द्वितीय संस्करण वि.सं. २०५७ वी.नि.सं. २५२७ सन् मार्च २००० कल्पवतंसिकासूत्र
वाचना प्रमुख :- आचार्य तुलसी संपादक :
आचार्य महाप्रज्ञ प्रकाशन :- जैन विश्व भारती लाडनूं (राज.),
वि.स. २०४५ कार्तिक कृष्णा-१३, सन् १६८६ मुद्रक :- एस. नारायण एण्ड सन्स (७११७), १८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६ गुणस्थानरोहणअढीसत्तद्वारी लेखक :
अमोलक ऋषिजी प्रकाशन :- श्री शारदा प्रेस अफलगंज चमन, दक्षिण हैदराबाद प्रथमावृत्ति : वी.सं. २४४१ वि.सं. १६७१ ई.सन् १६१५
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