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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा.....
पंचम अध्याय........{381}
गुणस्थान में नामकर्म का संवेध
गुणस्थान
बन्धस्थान
उदयस्थान
सत्तास्थान
मिथ्यात्व
२३,२५,२६,२८, २६,३०६
६२,८६,८८,८६,८०,७८-६
२१,२४,२५,२६,२७,२८,२६, ३०,३१,६ २१,२४,२५,२६,२६, ३०,३१,७
२८,२६,३००६
६२,८८, = २
सास्वादन मिश्र
२८,२६ = २
२६,३०,३१ = ३
६२, ८८, = २
। | २१,२५,२६,२७,२८,२६,३०,३८
६३,६२,८६,८८,४
४ अविरत सम्यग्दृष्टि २८,२६,३०=३ ५ | देशविरति । २८,२६२
प्रमत्तसंयत । २८,२६२
२५,२७,२८,२६,३०, ३१६
६३,६२,८६,८८,४ ६३,६२,८६,८८,४
२५,२७,२८,२६,३०५
२६,३०२
६३,६२,८६,८८,४ ६३,६२,८६,८८,४
३०१
३०%D9
६३,६२,८६,८८,८०,७६,७६,७५-८
७ । अप्रमत्तसंयत २८,२६,३०,३१%४ ८ | अपूर्वकरण २८,२६,३०,३१,१५
| अनिवृत्तिकरण ११ १० सूक्ष्मसंपराय | ११
उपशान्तमोह क्षीणमोह
३०१
६३,६२,८६,८८,८०,७८,७६,७५८
३०%D9
६३,६२,८६,८८४
३०१
८०,७६,७६,७५४
१३
स या गी केवली अयोगी केवली
२०,२१,२६,२७,२८, २६,३०,३१-८
८०,७६,७६,७५४
८०,७६,७६,७५, ६,८-६
इस चर्चा के पश्चात् सप्ततिका नामक षष्ठम कर्मग्रन्थ की गाथा क्रमांक ६०, ६१, ६२ और ६३ में क्रमशः मिथ्यात्व गुणस्थान और सास्वादन गुणस्थान के बन्ध विकल्पों तथा मिथ्यात्व और सास्वादन गुणस्थान में उदय विकल्पों का विवेचन है। इसमें यह बताया गया है कि बन्धस्थान किस बन्धस्थान अथवा उदयस्थान में कितने बन्धविकल्प और उदयविकल्प होते हैं । इन दो गुणस्थानों में नामकर्म के बन्ध और उदय के विकल्पों की चर्चा उपलब्ध नहीं होती है । षष्ठ कर्मग्रन्थकार ने यह चर्चा क्यों नहीं कि यह बता पाना कठिन है । उन्होंने अग्रिम गाथाओं में मार्गणाओं की अपेक्षा से ही नामकर्म के बन्धस्थान, उदयस्थान और सत्तास्थानों की चर्चा की है, गुणस्थानों की अपेक्षा से वहाँ हमें कोई चर्चा परिलक्षित नहीं होती है ।
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