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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
पंचम अध्याय........{380)
(६) अनिवृत्तिकरण गुणस्थान
(१०) सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान
बन्धस्थान| उदयस्थान सत्तास्थान ०=० १=१ २८, २४, २१, १ = ४
बन्धस्थान उदयस्थान| सत्तास्थान ५१२१ २८, २४, २३, २१, १३, १२, ११७ ४ = १ क्रोध = १२८, २४, २१, ११, ५, ४ = ६ ३ = ११ मान = १ २८, २४, २१, ११, ५, ४, ३७
= ११ माया = १२८, २४, २१, ११, ५, ४, ३, २ = ८ १ = १ लोभ = १२८,२४,२१,११,५,४,३,२,१६
(११) उपशान्तमोह गुणस्थान
बन्धस्थान
उदयस्थान
सत्तास्थान
०
:
०
030
२८, २४, २१%3३
इसके पश्चात् १२ वें क्षीणमोह १३ ३ सयोगी केवली गुणस्थान और १४ वें अयोगी केवली गुणस्थान में मोहनीय कर्म का क्षय हो जाने से मोहनीय कर्म के बन्ध स्थान, उदय स्थान और सत्तास्थान का अभाव होता है।
सप्ततिका नामक षष्ठम कर्मग्रन्थ की गाथा क्रमांक ५८ एवं ५६ गाथा में विभिन्न गुणस्थानों में नामकर्म के कितने बन्धस्थान, कितने उदयस्थान और कितने सत्तास्थान होते हैं, इसका विवेचन उपलब्ध होता है । वह विवरण इस प्रकार है - ।
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