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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
पंचम अध्याय........{358}
अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में बन्धहेतुओं के भंग/विकल्प
क्रमाक
बन्ध हेतु संख्या
कुल बन्ध हेतु विकल्प
योग
|
जो न घट सके उसके बाद
कषाय
युगल
कायवध
अविरति
भय
जुगुप्सा
कुलभंग विकल्प
|१४ । १
।
३
।
२
।
१
छः कायवध
| १३x| ३ =| ३६-४-३५x | ४x/ २x| १ | ५x
- -
१४००
२॥
पांच
१४
१
कायवध तथा
भय
।
| १३x| ३ =| ३६-४-३५x | ४x/ २x६x| ५x | १ |-..
८४००
पांच कायवध तथा जुगुप्सा
| १३x ३ =| ३६-४-३५x | ४x | २x६x | ५x | -
१
८४००
चार कायवध भय
तथा जुगुप्सा
| १३x| ३ =| ३६-४=३५x | ४x | २x| १५x
x | 9x3 | २१०००
कुल भंग |३६२००
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