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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा....
पंचम अध्याय........{359}
बन्ध हेतु संख्या
कुल बन्ध हेतु
क्रमाक
जो न घट सके उसके बाद
योग
वेद
कषाय
युगल
कायवध
अविरति
भय
जुगुप्सा
कुलभंग /विकल्प
१५ | १
छः कायवध तथा
भय
१३x| ३ =| ३६-४३५x | ४x
२x| १४ | ५ | १-
१४००
१५
२] छः कायवध
तथा जुगुप्सा
| १३x| ३ = ३६-४=३५x | ४x२x
५x - १x१४००
३ पांच कायवध | १५ | १
३ | २ | ५ । भय तथा जुगुप्सा १३x] ३| ३६-४%3D३५४ | ४x२x६x | ५x | १|x१८४००
| कुल भंग ३६२००
|१६
३
।
२
६
।
कायवध भय तथा जुगुप्सा
३६-४=३५x | ४x | २x | 9x | ५x १
x१=| १४००
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