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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
पंचम अध्याय........{357}
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क्रमाका
जो न घट सके उसके बाद
बन्ध हेतु संख्या
कुल बन्ध हेतु
वेद
कषाय
कायवध
अविरति
भय
जुगुप्सा
कुलभंग /विकल्प
-
पांच कायवध
|३%D| ३६-४%D३५x |
८४००
चार कायवध |१३
तथा भय
|३%
३६-४%३५४ |
|१३
१
।
१
३
चार कायवध तथा जुगुप्सा
३६-४=३५x |
| - |x=
२१०००
193
चार
| १३x| ३ =| ३६-४-३५x | ४x | २x | २० | ५ | १ |x=| २८०००
कायवध भय
तथा जुगुप्सा
कुल भंग
७८४००
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