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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
पंचम अध्याय........{355}
अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में बन्धहेतुओं के भंग/विकल्प
बन्ध हेतु संख्या
क्रमाक
कुल बन्य हेतु विकल्प
जो न घट सके उसके बाद
योग
कषाय
युगल
कायवध
अविरति
भय
जुगुप्सा
कुलभंग /विकल्प
३
|
२
| १
।।
एक कायवध
| १३x| ३ =| ३६-४=३५x | xx| २x६x| ५| - |- | ८४००
| १० | १
|
दो कायवध
१३x| ३ =| ३६-४३५x | ४x | २x | १५x
|२१०००
१०।१
एक कायवध तथा भय
| ३ =| ३६-४-३५x | ४x| २x६x
५१x - I
८४००
| १० | १
।
३
|
२
| १ |१
१
एक कायवध तथा जुगुप्सा
| १३x| ३ =| ३६-४=३५x | ४x| २x६x|
५७ - |x=| ८४००
कुल भंग |३७८००
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