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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
पंचम अध्याय........{328}
सत्ता यंत्र
क्रमांक
गुणस्थान
| मूलप्रकृतियां
उत्तरप्रकृतियां
उपशमश्रेणी
क्षपकश्रेणी
ज्ञानावरणीयकर्म
दर्शनावरणीयकर्म
वेदनीयकर्म
मोहनीयकर्म
आयुष्यकर्म नामकर्म
गोत्रकर्म
अन्तरायकर्म
१४८/१४२ १३६
| १३६ | १३८ ५ | ६ | २ | २१ | १ | ६३ | २ |५| | १४८/ १४२ १३६ | १२२ | ५ | ६ | २ | २१ | १ | |२||
१४२ १३६ | ११४ / ५ ६ | २ | १३ | १ | ८० | २ || १४८/१४२१३६ ११३
२ | १२ | १ ८० २५ १४८/ १४२, १३६ | ११२ | ५ | ६ | २ | ११ ।
२५ ८१४८/ १४२ १३६ | १०६ ५६२५ ८०२५ |८ १४८/ १४२ १३६ | १०५ ५६ २४ १८०२५ | | | १४५/ १४२| १३६ | १०४ | ५ | | २ | ३ | | ८० | २ || | |१४८/ १४२ १३६ | १०३ | ५ | ६ २ | २ | १ | ८० | २ |५|
| १४८/१४२] १३६ | १०२ ५। ६ सूक्ष्मसंपराय
अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के नौ भागों में
८०
८ | १४८/ १४२| १३६ /-
| ५ | ६ | २ |
४/१६३/२५
99/
उपशान्तमोह
| ८ | १०१/
१०१/
५
२
- १८०२५
क्षीणमोह
६६
६६
१३/ सयोगीकेवली
।।। |
१ | ८० | २ |
८५८
२॥
८०२/१/
अयोगीकेवली
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