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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा.....
पंचम अध्याय........{329)
बन्ध विच्छेद
क्रमांक
गुणस्थान
ज्ञानावरणीय
| दर्शनावरणीय
वेदनीय
मोहनीय
आयुष्य
अन्तराय
योग
| ०
| १ | मिथ्यात्व
0
| 0 |०
४
|0
|9|9
|
|
४३
|
|
२ |सास्वादन ३ मिश्र ४ अविरतसम्यग्दृष्टि ५ देशविरत ६ प्रमत्तसंयत ७ अप्रमत्तसंयत ८ अपूर्वकरण
५३
|
|
| ००० ०० ० ० ०००००
।
| ० | ३ | ० । १५ । ३
१७
३५ ३५ । १
|
|
"||||||||00000०० | गोत्र
|
|
१७
|
|
६४
|
| ६ |अनिवृत्तिकरण
६८
| ० | ५ | १ | १७ | ३ | | ० | ५ | १ | २१ । ३ ।
२६ | २६
|
१०३
|
|M |
१०३
|
२६
| ६७
११६
|
|
१० सूक्ष्मसंपराय ११ उपशान्तमोह १२ क्षीणमोह १३ सयोगीकेवली १४ अयोगीकेवली
२६
६७
११६
|
|
|६७ ।
११६
|
२६ । ४
c |
। ६७ | २ |५
१२०
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