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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
पंचम अध्याय........{327}
सत्ता यंत्र
क्रमांक
गुणस्थान
मूलप्रकृतियां
उत्तरप्रकृतियां
उपशमश्रेणी
क्षपकश्रेणी
ज्ञानावरणीयकर्म
दर्शनावरणीयकर्म
वेदनीयकर्म
मोहनीयकर्म
आयुष्यकर्म
नामकर्म
गोत्रकर्म
| अन्तरायकर्म
|
सामान्य
८ | १४८
| २ | २८
| E३] २५
|
१ | मिथ्यात्व
८ | १४८
E२२८
F
२ सस्वादन
१४७
५ ६२ २८
F
३ | मिश्र
१४७
५ | E| २ | २८
| ६३]
२
यग्दृष्टि ८ | १४ | १४१ १४५/१३८ ५ | ६ | २ | २८/२१ /- | E३/ २
५
५ | देशविरत
|८ | १४८१४११४५/१३८५ |
|२| २८/२१ ।
६३] २५
६ प्रमत्तसंयत
८ | १४८ | १४११४५/१३८/५
६
२ | २८/२१
१/०
६३]
२.
| अप्रमत्तसंयत | ८ | १४८१४११४५/१३८/५ ६२ | २८/२१ | -
६३]
२
- अपूर्वकरण - ३८२६२ २८४२ - २२
| अपूर्वकरण
|५|
|२| २८/२१
-
| १४८ | १३६ १३८
/१४२
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