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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा.....
पंचम अध्याय........{317} कर्म की पाँचों प्रकृतियों का बन्ध भी एक साथ होता है, उदय भी एकसाथ होता है और सत्ता भी एक साथ होती है, उसके
धस्थान, उदयस्थान और सत्तास्थान एक ही हैं। इसी प्रकार अन्तराय कर्म की पाँचों प्रकृतियों का बन्धस्थान, उदयस्थान और सत्तास्थान एक ही है, क्योंकि इसकी भी पाँचों प्रकृतियों का बन्ध एक साथ ही होता है, उदय भी एक साथ रहता है तथा सत्ता भी एक साथ होती है। जहाँ तक वेदनीय, आयुष्य और गोत्र कर्म का प्रश्न है, उनका बन्धस्थान और उदयस्थान एक ही होते हैं, किन्तु सत्तास्थान दो होते हैं। सत्तास्थान दो होने का कारण यह है कि वेदनीय कर्म की दोनों ही कर्मप्रकृतियाँ अयोगीकेवली गुणस्थान के भी चरम समय तक सत्ता में रहती है। द्विचरम समय में एक का क्षय हो जाता है, अतः चरम समय में एक की सत्ता होती है। इस प्रकार इसके सत्तास्थान दो प्रकृतियों की एकसाथ सत्ता और एक प्रकृति की सत्ता - ऐसे दो स्थान होते हैं। आयुष्य कर्म के सम्बन्ध में, जब तक अग्रिम भव के आयुष्य का बन्ध नहीं होता है, तब तक एक ही आयुष्य कर्म की सत्ता होती है, किन्तु अगले भव के आयुष्य का बन्ध हो जाने पर इस भव के और अगले भव के आयुष्य का बन्ध हो जाने पर इस भव की और अगले भव की आयुष्य की एक साथ सत्ता और इसी भव की आयुष्य की सत्ता ऐसे आयुष्य कर्म के दो सत्तास्थान होते हैं। इसी प्रकार सामान्यतः गोत्रकर्म की दोनों प्रकृतियाँ एक साथ सत्ता में रहती हैं, किन्तु अयोगीकेवली गुणस्थान के द्विचरम समय में नीचगोत्र का क्षय हो जाता है, तब एक मात्र उच्चगोत्र की सत्ता रहती है। इस प्रकार गोत्रकर्म के भी सत्तास्थान दो माने गए हैं, किन्तु एक समय में एक ही प्रकृति का बन्ध होता है और एक ही प्रकृति का उदय रहता है, इसकी अपेक्षा बन्धस्थान और उदयस्थान एक-एक ही होते है। बन्धस्थान आदि के स्वरूप को समझने के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि जितनी उत्तर कर्मप्रकृतियों का बन्ध, उदय और सत्ता एक साथ होती है, उनके बन्धस्थान, उदयस्थान और सत्तास्थान एक होते हैं, किन्तु जिनकी बन्ध, उदय और सत्ता भिन्न-भिन्न रूप में होती है, उनके बन्धस्थान, उदयस्थान और सत्तास्थान-दो, तीन, चार आदि अलग-अलग रहते है । पंचसंग्रह के सप्ततिका नामक तृतीय खण्ड में कर्मप्रकृतियों के विभिन्न गुणस्थानों में होनेवाले बन्धस्थान, उदयस्थान और सत्तास्थान की चर्चा है। आगे दसवीं गाथा में दर्शनावरणीय कर्म के बन्धस्थान, उदयस्थान और सत्तास्थान की चर्चा करते हुए यह बताया गया है कि दर्शनावरणीय कर्म के नौ, छः और चार-ऐसे तीन बन्धस्थान होते है। मिथ्यादृष्टि और सास्वादन गुणस्थान में दर्शनावरणीय कर्म की नौ प्रकृतियों का एक साथ बन्ध होता है। इस प्रकार प्रथम और द्वितीय गुणस्थानवी जीवों में दर्शनावरणीय कर्म का एक बन्धस्थान होता है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर अपूर्वकरण गुणस्थान तक दर्शनावरणीय कर्म की, स्त्यानगृद्धित्रिक को छोड़कर, छः प्रकृतियों का बन्ध होता है, यह दूसरा बन्धस्थान है। अपूर्वकरण गुणस्थान के द्वितीय भाग से सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक स्त्यानगृद्धित्रिक तथा निद्राद्विक का अभाव होने से केवल चार प्रकृतियों का बन्ध होता है। यह दर्शनावरणीय कर्म का तीसरा बन्धस्थान है। सत्ता की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के प्रथम भाग तक दर्शनावरणीय कर्म की नौ प्रकृतियाँ सत्ता में होती है, किन्तु यह उल्लेख क्षपकश्रेणी की अपेक्षा से समझना चाहिए, क्योंकि उपशमश्रेणी की अपेक्षा से तो उपशान्तमोह गुणस्थान तक दर्शनावरणीय कर्म की सभी नौ प्रकृतियों की सत्ता होती है। नौ गुणस्थान के द्वितीय भाग से लेकर क्षीणमोह गुणस्थान के द्विचरमसमय तक दर्शनावरणीय की छः प्रकृतियों की सत्ता रहती है। क्षीणमोह गुणस्थान के अन्तिम भाग के पूर्व तक दर्शनावरणीय कर्म की चार प्रकृतियों की सत्ता होती है, अतः दर्शनावरणीय कर्म के सत्तास्थान भी तीन है, किन्तु क्षीणमोह गुणस्थान के चरमसमय में उनका भी क्षय हो जाने से दर्शनावरणीय कर्म की कोई भी प्रकृति सत्ता में नहीं रहती है। उदय की अपेक्षा से प्रथम गुणस्थान से लेकर प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक दर्शनावरणीय कर्म की नौ प्रकृतियों का उदय होता है। अप्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर क्षीणमोह गुणस्थान के द्विचरम समय तक दर्शनावरणीय कर्म की छ: प्रकृतियों का उदय रहता है। इसके पश्चात् क्षीणमोह गुणस्थान के चरमसमय तक दर्शनावरणीय कर्म की चार प्रकृतियों का उदय रहता है, अतः दर्शनावरणीय कर्म के उदयस्थान भी तीन हैं । आगे सयोगीकेवली गुणस्थान में उनका क्षय हो जाता है।
इस प्रकार पंचसंग्रह के सप्ततिका नामक तृतीय खण्ड में बन्ध, सत्ता और उदयस्थान सम्बन्धी संवेध विकल्पों की विस्तृत चर्चा है। विस्तार भय से हम उस चर्चा में जाना नहीं चाहते। इस ग्रन्थ में निम्न क्रम से आठों कर्मप्रकृतियों के बन्ध, सत्ता और
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