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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... चतुर्थ अध्याय........{253} सिद्धसेनगणि की तत्वार्थभाष्यवृत्ति और गुणस्थान श्वेताम्बर परम्परा में तत्त्वार्थसूत्र की टीकाओं में उमास्वाति के स्वोपज्ञभाष्य के पश्चात् सिद्धसेनगणि की टीका का क्रम आता है । यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि सिद्धसेनगणि ने अपनी यह टीका उमास्वाति के स्वोपज्ञभाष्य को सामने रखकर लिखी है। अतः यह टीका न केवल तत्त्वार्थसूत्र पर है, अपितु उसके स्वोपज्ञभाष्य पर भी है । श्वेताम्बर परम्परा में सिद्धसेन नामक अनेक आचार्य हुए हैं; उसमें सर्वप्रथम स्थान सिद्धसेन दिवाकर का है, किन्तु प्रस्तुत टीका के कर्ता सिद्धसेनगणि, सिद्धसेन दिवाकर से भिन्न है और अपने काल की अपेक्षा भी उनसे परवर्ती हैं । प्रस्तुत टीका के कर्ता सिद्धसेनगणि, दिन्नगणि क्षमाश्रमण के शिष्य श्री सिंहसूरि के प्रशिष्य एवं भास्वामी के शिष्य थे । यह तथ्य प्रस्तुत टीका की प्रशस्ति से स्पष्ट हो जाता है । इनके प्रगरूप सिंहसूरि के गुरु दिन्नगणि के नाम के साथ क्षमाश्रमण शब्द का प्रयोग हुआ है। श्वेताम्बर परम्परा में छठी-सातवीं शताब्दी में आचार्यों के नाम के साथ क्षमाश्रमण शब्द का प्रयोग प्रचलित था । इस आधार पर यह माना जा सकता है कि सिद्धसेनगणि का काल लगभग सातवीं शताब्दी के आसपास होना चाहिए। पंडित सुखलालजी का मानना है कि सिद्धसेनगणि. गंधहस्ति के नाम से भी जाने जाते थे । गंधहस्ति का उल्लेख शीलांग की आचारांग टीका में और अभयदेवसूरि की सन्मति तर्क प्रकरण की टीका में मिलता है । इस आधार पर उनका काल नवीं शताब्दी से पूर्व ही मानना होगा । पंडित हीरालाल रसिकलाल कापड़िया के अनुसार सिद्धसेनगणि कृत इस टीका में धर्मकीर्ति के प्रमाण विनिश्चय का उल्लेख हुआ है । धर्मकीर्ति का काल विक्रम की सातवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध सुनिश्चित है, अतः सिद्धसेनगणि का काल सातवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से पूर्व नहीं हो सकता है । आचार्य हरिभद्र की नन्दीसूत्र की टीका में तथा उनकी तत्त्वार्थ की टीका में सिद्धसेनगणि की इस टीका का प्रभाव देखा जाता है । इस आधार पर इतना सुनिश्चित है कि सिद्धसेनगणि का काल विक्रम की छठी शताब्दी के पश्चात् और आठवीं शताब्दी के पूर्व अर्थात् लगभग सातवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध रहा है । सिद्धसेनगणि की प्रस्तुत टीका में गुणस्थान की अवधारणा के अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं । इस आधार पर भी यह माना जा सकता है कि उनका काल छठी शताब्दी के पश्चात् ही रहा होगा । सिद्धसेनगणि के अतिरिक्त बप्पभट्टसूरि के गुरु सिद्धसेनसूरि (लगभग नवीं शताब्दी), विलासवती कथा के लेखक यशोदेवसूरि के शिष्य सिद्धसेन सूरि (लगभग ग्यारहवीं शताब्दी), प्रवचनसारोद्धार की वृत्ति के कर्ता चंद्रगच्छीय प्रद्युम्नसूरि की परम्परा में देवभद्रसूरि के शिष्य सिद्धसेनसूरि (लगभग बारहवीं शताब्दी) बृहत्क्षेत्रसमास के टीकाकार उपकेशगच्छीय देवगुप्तसूरि के शिष्य सिद्धसेनसूरि (लगभग बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध) आदि अन्य सिद्धसेनसूरि ही श्वेताम्बर परम्परा में हुए, किन्तु वे इस टीका के कर्ता नहीं माने जाते हैं, क्योकि सिद्धसेनगणि ने तत्त्वार्थसूत्र की टीका की अन्तिम प्रशस्ति में अपनी जो गुरु परम्परा दी है, वह इन सबसे भिन्न है और सिद्धसेनसूरि नामक ये सभी विद्वान परवर्तीकालीन हैं । इन सामान्य सूचनाओं के अतिरिक्त तत्त्वार्थसूत्र की प्रस्तुत टीका के टीकाकार सिद्धसेनगणि के सन्दर्भ में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। आगे यह देखने का प्रयत्न करेंगे कि सिद्वसेनगणि कृत तत्त्वार्थसूत्र की इस टीका में गुणस्थान सिद्धान्त सम्बन्धी विवेचन किस रूप में हुआ है । सिद्धसेनगणि ने तत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्याय के तृतीय सूत्र की टीका में सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण का उल्लेख किया है । अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण को अष्टम और नवम गुणस्थान के रूप में भी जाना जाता है, किन्तु यहाँ उनका जो उल्लेख हुआ है वह सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए की गई ग्रन्थिभेद की प्रक्रिया के सम्बन्ध में है । अतः प्रस्तुत सन्दर्भ में गुणस्थानों की कोई विवेचना है, ऐसा माना जा सकता है। पुनः प्रथम अध्याय के छब्बीसवें सूत्र की टीका में अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान के विवेचन में यह बताया गया है कि अवधिज्ञान, संयत और असंयत सभी जीवों को, सभी गति में होता है; किन्तु मनः पर्यवज्ञान मनुष्यगति में केवल संयत जीवों को Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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