SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा..... चतुर्थ अध्याय........{225} असंयतता औदयिक भाव है । संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों के चारित्र की अपेक्षा क्षायोपशमिक भाव है, किन्तु सम्यक्त्व क्षायिक भाव है। चारों उपशमकों के औपशमिक भाव हैं, क्योंकि उनके सम्यक्त्व एवं चारित्र दोनों की अपेक्षा से औपशमिक भाव हैं । औपशमिक सम्यग्दृष्टि जीव के असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में सम्यक्त्व औपशमिक हैं, किन्तु असंयतता औदयिक भाव है । क्षायोपशमिक सम्यक्त्ववाले संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों के चारित्र की अपेक्षा क्षायोपशमिक भाव हैं और सम्यक्त्व भी क्षायोपशमिक भाव हैं । चारों उपशमकों के चारित्र की अपेक्षा औपशमिक भाव हैं, और सम्यक्त्व क्षायोपशमिक हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि के पारिणामिक भाव हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि के क्षायोपशमिक भाव हैं । मिथ्यादृष्टि के औदयिक भाव हैं। __ भाव अनुयोगद्वार में संज्ञीमार्गणा में विविध गुणस्थानवर्ती संज्ञी जीवों के भाव, भाव-अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जैसे बताये गए हैं, वैसे ही मानना चाहिए । असंज्ञी के औदयिक भाव हैं । संज्ञी और असंज्ञी व्यवहार से रहित जीवों के भाव, भाव-अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जैसे बताये गए हैं, वैसे ही मानना चाहिए। भाव-अनुयोगद्वार मे आहारमार्गणा में आहारक और अनाहारक जीवों के भाव, अपने गुणस्थानों की अपेक्षा भाव-अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जैसा निर्देशित किया गया है, वैसे ही मानना चाहिए। अष्टम अल्प-बहुत्व अनुयोगद्वार : पूज्यपाद देवनन्दी ने तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका में आठ अनुयोगद्वारों के आधार पर चौदह मार्गणाओं को लेकर चौदह गुणस्थानों की चर्चा की है । अष्टम अल्प-बहुत्व अनुयोगद्वार में गुणस्थानों की अपेक्षा से जीवों की ही हीनाधिक संख्या का विवरण है । अल्प-बहुत्व का यह कथन दो प्रकार से किया गया है - सामान्य और विशेष । सामान्य की अपेक्षा से तीनों उपशमक सबसे थोड़े हैं, जो अपने-अपने गुणस्थान के कालों में प्रवेश की अपेक्षा समान२६ संख्यावाले हैं । उपशान्तकषायवाले जीव भी उतने ही हैं । इनसे अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानवर्ती क्षपक जीव संख्यातगुणा३३७ है । क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ, क्षपक जीवों के जितने ही हैं। सयोगी केवली और अयोगी केवली प्रवेश की अपेक्षा समान संख्यावाले हैं । इनसे अपने काल में समुदित हुए सयोगी केवली संख्यातगुणा हैं । इनसे अप्रमत्तसंयत संख्यातगुणा हैं । इनसे प्रमत्तसंयत संख्यातगुणा हैं । इनसे संयतासंयत असंख्यातगुणा हैं। इनसे सासादनसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणा हैं । इनसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि संख्यातगुणा हैं । इनसे असंयतसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणा हैं । इनसे मिथ्यादृष्टि अनन्तगुणा हैं । ___ अष्टम अल्प-बहुत्व अनुयोगद्वार में विशेष की अपेक्षा गतिमार्गणा में नरकगति में सभी पृथ्वियों में नारकी में सासादनसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं । इनसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि संख्यातगुणा है। इनसे असंयतसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणा हैं । इनसे मिथ्यादृष्टि असंख्यातगुणा हैं । तिर्यंचगति में तिर्यंच में संयतासंयत सबसे थोड़े हैं । शेष गुणस्थानवाले तिर्यंचों का अल्प-बहुत्व, अल्प-बहुत्व अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जैसा निर्दिष्ट किया गया है, वैसा ही मानना चाहिए । मनुष्यगति में मनुष्यों में उपशमकों से लेकर प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक का अल्प-बहुत्व, अल्प-बहुत्व अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जैसा निर्दिष्ट किया गया है, उसके अनुसार ही जानना चाहिए । प्रमत्तसंयतों से संयतासंयत संख्यातगुणा हैं। इनसे सासादनसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणा हैं । इनसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि संख्यातगुणा हैं। इनसे असंयतसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणा हैं । इनसे मिथ्यादृष्टि असंख्यातगुणा हैं । देवगति में देवों का अल्प-बहुत्व नारकी के समान ही है । अल्प-बहुत्व अनुयोगद्वार में इन्द्रियमार्गणा में एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों में गुणस्थान भेद न होने से अल्प-बहुत्व नहीं है। ३३६ कम से कम एक और अधिक से अधिक चौवन । ३३७ कम से कम एक और अधिक से अधिक एक सौ आठ । Jāin Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy