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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा.......
चतुर्थ अध्याय ........{226} ये सभी नियमतः मिथ्यादृष्टि होते हैं । पंचेन्द्रियों का अल्प- बहुत्व, अल्प - बहुत्व अनुयोगद्वार में जिसप्रकार निर्दिष्ट किया गया है, वैसा ही मानना चाहिए, किन्तु इतनी विशेषता है कि असंयतसम्यग्दृष्टि पंचेन्द्रियों से मिथ्यादृष्टि पंचेन्द्रिय असंख्यातगुणा हैं । कायमाणा में स्थावर काय में गुणस्थान भेद न होने से अल्प-बहुत्व नहीं है । त्रसकाय का अल्प- बहुत्व पंचेन्द्रियों के समान है ।
योगमार्गणा में वचनयोगी और मनोयोगी जीवों का अल्प-बहुत्व पंचेन्द्रियों के समान है। काययोगी का अल्प - बहुत्व, अल्प- बहुत्व अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जैसा निर्दिष्ट किया गया है, वैसा ही मानना चाहिए ।
वेदमार्गणा में स्त्रीवेद और पुरुषवेदवाले जीवों का अल्प - बहुत्व पंचेन्द्रियों के समान है। नंपुसकवेदवाले और वेद रहित जीवों का अल्प- बहुत्व, अल्प - बहुत्व अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जैसा निर्दिष्ट किया गया है, वैसा ही मानना चाहिए ।
कषायमार्गणा में क्रोधकषाय, मानकषाय और मायाकषायवाले जीवों का अल्प- बहुत्व पुरुषवेदवालों के समान है, किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें असंयतसम्यग्दृष्टि से मिथ्यादृष्टि अनन्तगुणा । लोभकषायवालों में दोनों उपशमकों की संख्या समान है । इनसे क्षपक संख्यातगुणा हैं । इनसे सूक्ष्मसंपराय उपशमक संयत विशेष अधिक हैं । इनसे सूक्ष्मसंपराय क्षपक संख्यातगुणा हैं । शेष गुणस्थानवालों का अल्प - बहुत्व, अल्प- बहुत्व अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जैसा निर्दिष्ट किया गया है, वैसा ही मानना चाहिए ।
ज्ञानमार्गणा में मति- अज्ञानी और श्रुत - अज्ञानी में सासादनसम्यग्दृष्टि सबसे अल्प हैं । मिथ्यादृष्टि अनन्तागुणा हैं I विभंगज्ञानी में सासादनसम्यग्दृष्टि सबसे अल्प हैं । मिध्यादृष्टि असंख्यात गुणा हैं । मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी में चारों उपशमक सबसे अल्प हैं । इनसे चारों क्षपक संख्यातगुणा हैं । इनसे अप्रमत्तसंयत संख्यातगुणा हैं । इनसे प्रमत्तसंयत संख्यातगुणा । इनसे संयतासंयत असंख्यातगुणा हैं । इनसे प्रमत्तसंयत संख्यातगुणा हैं । केवलज्ञानी में अयोगी केवली से सयोगी केवली संख्यातगुणा हैं ।
संयममार्गणा में सामायिक संयत और छेदोपस्थापनीय संयत में दोनों उपशमक समान संख्यावाले हैं। इनसे दोनों क्षपक संख्यातगुणा हैं । इनसे अप्रमत्तसंयत संख्यातगुणा हैं । इनसे प्रमत्तसंयत संख्यातगुणा हैं । परिहारविशुद्धि में अप्रमत्तसंयत से प्रमत्तसंयत संख्यातगुणा हैं । सूक्ष्मसंपराय संयत में उपशमकों से क्षपक संख्यातगुणा हैं । यथाख्यातसंयत में उपशान्तकषायवालों से क्षीणकषाय जीव संख्यातगुणा हैं । अयोगी केवली उतने ही हैं । सयोगी केवली उनसे संख्यातगुणा हैं । संयतासंयतों का अल्प-बहुत्व नहीं हैं । असंयतों में सासादनसम्यग्दृष्टि सबसे अल्प है । इनसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि संख्यातगुणा हैं । इनसे असंयतसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणा हैं । इनसे मिथ्यादृष्टि अनन्तगुणा हैं ।
दर्शनमार्गणा में चक्षुदर्शनवालों का अल्प - बहुत्व मनोयोगी के समान है । अचक्षुदर्शनवालों का अल्प - बहुत्व काययोगी के समान है । अवधिदर्शनवालों का अल्प - बहुत्व अवधिज्ञानी के समान है । केवलदर्शनवालों का अल्प - बहुत्व केवलज्ञानी के समान है ।
श्यामार्गणा में कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावालों का अल्प - बहुत्व असंयतों के समान है । पीत और पद्मलेश्यावालों में अप्रमत्तसंयत सबसे अल्प हैं । इनसे प्रमत्तसंयत संख्यातगुणा हैं। शेष गुणस्थानों का अल्प - बहुत्व पंचेन्द्रियों के समान हैं । शुक्लले श्यावालों में उपशमक सबसे अल्प हैं। इनसे क्षपक संख्यातगुणा हैं। इनसे सयोगी केवली संख्यातगुणा हैं। इनसे अप्रमत्तसंयत संख्यातगुणा हैं। इनसे प्रमत्तसंयत संख्यातगुणा हैं । इनसे संयतासंयत असंख्यातगुणा हैं । इनसे सासादनसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणा हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि संख्यातगुणा हैं । इनसे मिथ्यादृष्टि अनन्तगुणा हैं ।
भव्यमार्गणा में भव्यों का अल्प- बहुत्व, अल्प - बहुत्व अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जैसा निर्दिष्ट किया गया है, वैसा ही मानना चाहिए ।
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