________________
मंगल कामना.........
"प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा" जैसे उत्कृष्ट विषय पर लेखिका साध्वीजी का शोध प्रबन्ध वास्तव में कठोर एवं विस्तार से जैन आगम के विस्तृत अध्ययन का सूचक है । इसमें चौदह गुणस्थानों का गहनता से अध्ययन कर संजोया है । निश्चित ही यह , साहित्य लोकप्रियता प्राप्त करेगा।
राष्ट्रसन्त वर्तमानाचार्य श्रीमद्विजय जयन्तसेनसूरीश्वरजी म० सा० द्वारा दीक्षित एवं । सुशिक्षित, मिलनसार तथा मधुर स्वभावी साध्वी डॉ० दर्शनकलाश्रीजी की लेखिनी वास्तव में अनुमोदनीय है। मैं आशा करता हूँ कि आगे भी अपने गंभीर विषयों पर चिन्तन, मनन करते हुए जिनशासन व गुरुगच्छ की शोभा में निरन्तर अभिवृद्धि के कार्य करती रहेगी।
पारा से सिद्धाचल तीर्थ छःरिपालक यात्रा संघ के शुभ प्रसंग पर इन्हीं मंगलकामनाओं के
साथ...
11-01-2007
शुभेच्छु मनोहरलाल छाजेड़ पारा, जिला-धार (म.प्र.)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org